कुछ त सोच
हुन्दू कुई मेरु भी घर गौ मा जौमा मि जान्दू
जौ मा मि भी करदु घर आणु जाणु।
अब जाणु कैमा, कैमा लगाण आस
अब त लग्युं रैन्दू ख्याला म्यालो कु सास।
अपणो मा बि चितांदु अफी थै बिराणु
निरसु सी लगदु यखा कु पीणु खाणु।
उजड़ीगे होली कुड़ी, पुंगड़ी पोड़ी बांज
बिसरीग्यु अपणी बोली भाषा, नि जाण्दू रीति रिवाज़।
नि देखा कभी खिलदा ग्वीराल, फ्योंली, बुराँस
चाखि नि कभी हिसर काफ़ल, आरु, घिंगरु।
खायी नि कभी छंच्या, कपुलु, फाणु झुंगरु
देखी नि अल्लु कु हलोड़ु, लैयी नि ग्यों कु गेहोड़ु।
जगाई नि कभी चुल्लो मा झौल
नि देखी कभी उर्खयलो कुटदा चौल।
नि पीसी जन्दुरो कोदू, पीसी नि कभी सिलटो लोण
देखी नि बरखा का तिबड़ाट मा काम की भौण।
लगाई नि कभी हैल दंदलु, नि जाणी क्या हुन्दू जोल
देखि नि कन हूंद गोठ, गाड़ी नि कभी गोठ कु मोल।
मिली नि शुद्ध पाणी, देखी नि कभी बगदु रौल
देखि नि गौ कु जीवन, क्या जणण जीवन कु मोल।
आज जु हमुल नि देखी, कनके देखली औलाद भोल
नि छोड़ तौ पाड़ो जरा त द्वार मोर खोल
पछ्यांण ढकैकी ऐग्यो, गौ मुलुको छोड़
गौ-गल्यो, बाटा-घाटों याद करी, पाड़ो का बारा म कुछ त सोच!!!
अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
9716959339
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