जोन की आस
(एक गढ़वाली गजल)
हे हमुन भी देखी जोन केकी मुखड़ी म
हे हमुन भी पालि आस केकी जुकड़ी म
पर य बात औरे छै कि सी हमरा नी हवे सकिन।
हे हमुन भी पीनि द्वी - बुन्द केकी यादो म
जब ऐनी गेनी मेरा मौर - द्वार बार - तिवार
हमारी भी ह्वे गिणति निकमा-आवारा-बर्बादों म पर य बात औरे छै कि सी हमरा नी हवे सकिन।
हे हम भी रेनी उड़ेन्दा जब लोग सुनिन्द ह्वेगिनी निर्दैई निठुर दुन्या क डारा अर गैणों क सारा
वींकी चिठ्यों क रसीला आखर सुर्बुट पेड़िन।
पर य बात औरे छै कि सी हमरा नी हवे सकिन।
हे हमारी जिकुड़ी भी ह्वे झर वींकी खुदन
जब जेठ ऐनी रुड़ी अर सौण लोंकी कुरेड़ी
सचि नी पौंछी होली हिर्दै म ठेस वींका शकन।
पर य बात औरे छै कि सी हमरा नी हवे सकिन।
कवि- विक्रम शाह (विक्की)
नोट- सर्वाधिकार@सुरछित हैं
(एक गढ़वाली गजल)
हे हमुन भी देखी जोन केकी मुखड़ी म
हे हमुन भी पालि आस केकी जुकड़ी म
पर य बात औरे छै कि सी हमरा नी हवे सकिन।
हे हमुन भी पीनि द्वी - बुन्द केकी यादो म
जब ऐनी गेनी मेरा मौर - द्वार बार - तिवार
हमारी भी ह्वे गिणति निकमा-आवारा-बर्बादों म पर य बात औरे छै कि सी हमरा नी हवे सकिन।
हे हम भी रेनी उड़ेन्दा जब लोग सुनिन्द ह्वेगिनी निर्दैई निठुर दुन्या क डारा अर गैणों क सारा
वींकी चिठ्यों क रसीला आखर सुर्बुट पेड़िन।
पर य बात औरे छै कि सी हमरा नी हवे सकिन।
हे हमारी जिकुड़ी भी ह्वे झर वींकी खुदन
जब जेठ ऐनी रुड़ी अर सौण लोंकी कुरेड़ी
सचि नी पौंछी होली हिर्दै म ठेस वींका शकन।
पर य बात औरे छै कि सी हमरा नी हवे सकिन।
कवि- विक्रम शाह (विक्की)
नोट- सर्वाधिकार@सुरछित हैं
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