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गौं मेरू

याद ओन्दु नैतें आज अपुणु गौं
वू कच्चु बाटू वू बांजे डाल्यो कु छेल
सब कुछ ख्वेग्यों आज ये शहर की भीड मा
हरचेलि हमुन वू बचपन मा गुल्ली डण्डा कु खेलण
वा बसग्यालि रात,वुं चुलों की गर्म आग
वु क्वेला मा सेक्यीं रोटी,अर दगड्डा मा कंडालि कु साग!!
गौं कि चोपाल मा देर रात तक गप लगांणु
यीं शहर की दौड धूप या मशीनी जिन्दगी
हर जगहा धुंवा अर हर गली मा गन्दगी
चला वापस चलि जौला
अपुणु गौं अपुुणु मुलुक!!!!
                                  दीपू बिष्ट
                           ढमढमा चमोली गढवाल

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