याद वा पुराणि
हैंसी त आंदी पर वो ख़ुशी नि मिल्दी,
जो ख़ुशी तब मिल्दी छै जो हैंसी हम थै माँ-पिताजी हैसांदा छाया।
हिटदु छौ मी लमडुदू भी छौ पर,
अंगुली पकड़ी चलण सीखै जौ हाथुन आज भी वू हाथु थै थामी की जिकुड़ी हल्की व्है जांद।
चीज़ त आज भी खांदा छा पर,
माँजी बाटी की दिन्दी छै वू स्वाद अब नि आन्द।
त्यौहार त अब भी घर मा मनेंदा पर,
खांदा मा की खाणा की रस्याण अब नि आंद।
पाणी भी पींदा छा पर,
छोया पन्देरु का पाणी की तीस आज भी नि जांद।
याद त भौत आंद पर यादो मा,
"याद पुराणी" आज भी नि जांद।
जिकुड़ी आज भी खुदेड़ डाँडी काँठी की,
याद मा खुदेणी रांद।
अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
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