पहाड़ की वेदना
आखिर मी से क्या कमी ह्वेगे?
जू मिथै छोड़ी तू परदेश चलीगे
किलै तू मीथै अपणी याद मा झुरान्दी?
क्या त्वै थै मेरी जरा भी याद नि आंदी?
किलै मेरी जिकुड़ी मा चीरा तू लगान्दी?
सैति-पाली त्वै बड़ू कारि
तिन जरसी भी मेरु ध्यान नि धारी
वक्त-कुवक्त मी तेरा काम अऒ
आज जब मतलब निकलीगे तेरु
ता तिन मी फुन्डू रड़कओं
आस छाई मेरी त बस तिफर
पर तिन भी मी ठुकरओ
कु सूणलो मेरी वेदना, कु द्याखलू मी जना
अब मी से नि सयेंदी या पीड़ा
दुश्मन ह्वेगेनी अब मेरा सब अपणा
आखिर मी से क्या कमी ह्वेगे?
जू मिथै छोड़ी तू परदेश चलीगे
अनोप सिंह नेगी(अनिल)
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