Top Header Ad

Banner 6

Ghera A Garhwali Stories Collection by Manoj Bhatt Garhwali घेरा गढ़वाली कथा संग्रह मनोज भट्ट गढ़विळ

 घेरा... गढ्विळ कथा संग्रै

लिख्वार- #मनोज भट्ट ‘‘गढ़विळ’’
#घेरा कऽ लब्यता उफन से पैलि मि आप थैं यीं पोथी अन्वार बिंगाणु छौं. य अन्वार बणयीं च चित्रकार #कुंवर रवीन्द्र जी कि. ब्वा क्य बुन कुंवर साब, कुनस! यीं अन्वारै नकछक (नैन-नक्स) इन च कि एक जननु च जैंकु बैंगनी रंगों एक चदरु घड़मुड़ु कै ल्हियूँ छ. यु जननु मुंड बटि खुटौं तक ये चदरा लब्यतौं मा घिर्यूँ च. ब्वाला त् यु जननु घेरों मा घिर्यूँ च. ये जनना मुख ऐथर पसर्याँ छन बर्सु-बर्स्वा जमडांग. यि जमडांग छन जौंकु जनना थैं घेरों मा घिरयूँ च. वऽ ऐथर जौ त् जौ कनके ?
घड़ेक गुण्ये लिदाँ कि यु जननु को ह्वलु ? यु जननु ह्वे सकद- हमऽरि अड़ददि, पड़ददि, ददि, ब्वे, ब्वे कि सौत, बैण, भुल्लि, काकि, बोडि, बौ, नौनि, नतीण, फूफू, ज्यठि ब्वे, मौसि, ब्वारि, स्याळ, जननि, सौंजड़्य झणि क्य-क्य.
हम दिख्दाँ कि जनना मा अपड़ु क्या च. क्य गत वीं कि अपड़ि च ? न. पराण वींकु अपड़ु च ? न. वींकु जीवन अपड़ु च ? न. वींकि आसा-तिस्ना अपड़ि छन ? न. क्य वऽ बैखा जन चौंखळा मा दारु पेकि डंगडफान वीरै सकद ? न, दिदा न. मी याने महेशा नन्द बि जु अपड़ि सैंण थैं इन दिखलू त् बिबलै जौलु. चा मि कतगै बिगच्यूँ, दर्वळ्या, सुल्या किलै नि छौं. जनना फर मरजादा मा राणा छकण्य #घेरा गुरौ गाणि (की तरह) लिपट्याँ छन. बैख कुछ बि कै द्या धौं, वे खुण सात खून माप छन.
अब छांछ छोळा- कु रै ह्वलु इनु मनिख जैन हमऽरा ल्वै मा इनु जैर भोरि ? ये सवालौ सौंगु सि जबाब च कि हमऽरा पैथरा जुग मा अनगढ़-अनपढ़ मनिख छा जौंन बीज भूजी बुतिनि. मनिख्यातौ बीज वु परकिरत्या लब्ध बुतदा त् ज्व लपझप बैख-जननै अर छ्वटि जात-बड़ि जाता बीच अमणि हूणी च वीन नि हूण छौ. जमखंद छा वु जु अज्यूँ बि हमऽरा ऐथर पसरी बाठु अड्याणा छन. यि #घेरा छन वु जौंन मनख्यात थैं नि पंगन द्या. यूँ घेरों थैं छिमनाणू कु ऐथर आउन, वूंकऽ बारा मा बेड़ (नीचे) लिखणू छौं.


पैलि अंदाँ ‘घेरा‘ कथ्थौं कऽ घेरौं मा. घेरा कथ्थौं कऽ घेरा इकरैणिम् (एक मुस्त में) शांति प्रकाश जिज्ञासु जी कs इन लट्वळ्याँ छन- ‘‘वर्तमान दौर मा घेरा कु स्वरूप भी बदलेगी. बचपन मा ब्वे-बाब हमतैं घिरांदा छा, कबरि खेल्यूँ मा दगड़्या घिरांदा छा त् कबरि हम गोरूँ थैं घिरांदा छा. कबरि-कबरि त जंगळ मा जंगळि जानबरों तैं बि घिरांदा छा, पर आज कथगा ही तरों का घेरा छन. कुछ लोग कैक घेरा मा छन त कुछ लोग अपड़ा हि घेरा मा घिर्याँ छन. मि बोलू कि अपड़ा हि घेरा मा फंस्याँ छन. कबरि त पता बि नि चलदु कि हम जाण-बूझी, बिना सुच्याँ-समझ्याँ कै घेरा मा घिरे ग्याँ. अब सुख-चैन छोड़ी तै वे घेरा बिटी निकळणा जतनमा लग्याँ छाँ. इन्नि घेरा हमारी भासा गढ़वळि दग्ड़ि बि च ज्वा आठवीं अनुसूची मा आण से पैलि कतगै घेरों मा घिरेगी.’’
पण ज्वा #घेरा कथ्था च, वऽ वूँ घेरों कि कथ्था च जु साक्यूँ पैलि बटि मनख्यात फर कुकड़दड़ै तरां बिलकीं च. ये कुकड़दड़ा फर मनोज भट्ट गढ़वळि जी कि एक थमळै कचाग मरीं च. पण वाँ से पैलि यीं किताबै पैलि कथ्था सणि बंचदाँ- पैलि कथ्था च- ‘‘गुण्टु.’’ गुण्टु वे जमनौ च्याला च, जै जमनम् मास्टर हूँदा छा. मास्टर नौनौं थैं सांड बणी घपल्यांदा छा. तै जमना मा नौना इसकूल किलै नि जांदा छा ? वाँकऽ बिज्जम न्यूडा (कारण) हूँदा छा. एक त् पाठ्करम पिताण वळू हूँदु छौ, वाँ मा घ्वच्य यु हूँदु छौ कि मास्टर सुसरा-जिठणा जन चितएदा छा. नौना अपड़ि खैरि-बिखरि य जिकुड़ा मा उबडदा सवालू थैं पड़्त कै बोली नि सकदा छा. स्यु साब, गुण्टु #टौंडख्या (लापरवाह) त् छैंयी छौ पण उतरयूँ बि उत्गि छौ. अब आप निसाब कैरा कि क्वी नौनु अपड़ा बुबा फर कुक्कर छुल्ये सकद ? न ना. गुण्टु छुल्ये दींदु छौ. जब्बरि तकै वेकि #मणमण (मन की इच्छा) नि पुरेंदि छै, वु बुबै लुथ्य ल्हे (मुहाo- अपनी इच्छा पूरी करने के निमित्त अनेक हथकंडे अपना कर अत्यन्त परेशान करना) दींदु छौ. कुकरै डैरौ बुबा डाळम् चौढ़ि जांदु छौ. अब #धंधेणै (चकित रहने की) बात या च कि जु नौनु फी दर्जा मा फेल हूणू हो, इसकूल सप्पा नि जांदु हो, बाठौं मा लुकि जांदु हो; वी नौनु #ससगिरु (अकलबर) ह्वेकि अफसर बणि जांद. गुण्टु बटि गुणानन्द ह्वे जांद. कथ्था पड़्त कै मिसयीं च. पढ़्द-पढ़्द कपाळा भित्र एक आखर चितर बणू रांद.
‘‘यहाँ का राजा कौन‘‘ कथ्था बि पढ़दरा नौन्याळ्वी कथ्था च. यीं कथ्था द्वी पातर छन. एक नरेश अर हैंकु प्रदीप. नरेश पंण-लिखण्म् गद्दड़ च. प्रदीप फरजंट. नरेशौ खुण यीं कथ्था मा एक लैन इन लिखीं च- ‘‘कबूतर स्वोचदु आंख बंद कैरि ल्याव त बिराळु नि दिखदु अर वेकि छै कि उंद मुण्ड कैरि ल्याव त गुरुजी नि दिखदन. यु नौन्याळू ग्याड़ुपना हो. राजा बटि बासा बणै कण्यूँ मा जब पाटि फुटि, तब सौब #कणि (हेकड़ी) मोरि ग्येनि. सन् 1982 मा जब पैलि दाँ इड़िया छाला लाल थुबड़्या बस ऐ त् वाँकु बि घुंग्याट यीं कथ्थम् सुणेणु च.
परेक्टिकल कथ्था बंचदि दाँ अपड़ा #निम्याँ (बीते हुए) दिन मुख ऐथर फिल्मै तराँ सरकण बैठि जंदन. कथ्था मेस लगै कि गैंठ्ययीं च. लिख्वारै कथ्था इन मसकै कि रखीं कि रंगत ऐगि पंण मा. य कथ्था सन् पिचासि-छयास्या ओर-धोरै कथ्था च. आपन जु बिग्यानौ परेक्टिकल दे ह्वलु, लंका-टंका परेक्टिकल दीणू गे ह्वेला, गाडिम् बैठि छ्वारा कन हुळ्यौ मचांदन, होटल मा बैठी वु सात-आठ रुप्यम् साठ-सौतर रुप्यौ खाणु तैण तोड़ी खै जंदन. कथ्था बंचदि दाँ आप वूँ दिनू मा बौड़ि जैल्या. वु टैम वीसीआरम् फिल्म दिखणौ छौ. रातम् एक नौनु त् पढ़ै कन मा लग्यूँ च अर हौर नौना फिल्म दिखणा छन. हैंकऽ दिन परैक्टिकल हूँद, बकैदा खुल्लम्-खुल्ला गाइड बटि. वे बगतै ब्वयवस्था फर गैरि चोट मरीं च यीं कानि मा. यि दिन म्यारा बि दिख्याँ छन. हाई इसकूल-इंटर मा जौं दगड़्यौं कि फाइल अर चाल्ट मि बणांदु छौ, वूँकि मे से बिंडि नम्बर आंदि छै. छुकरेड़पनै रौंस (आनन्द) ऐ जांद यीं कथ्था बांची.
अब मि चार ठपाग मारी पाँच्वीं कथ्था मा ऐ ग्यों. कथ्थौ नौ च- ‘‘चैत रव्ट्टी’’ वन ब्याकरणा सकिंजा मा यीं कथ्थौ नौ हूण छौ- ‘‘चैतै र्वट्टि’’ यानि- चैत्र मास की रोटी. पण ब्याकरण फर लगा सळै, कथ्था इतगा रंगतदार च, इतगा रंगतदार च कि मेरि हैंसार्विळ पोड़िगि.

पुस्तक पहाड़ी बजार से ऑनलाइन ऑर्डर की जा सकती है 


हैंसण से पैलि आप अंठम् धैरा कि चैतै रुट्टि क्य ह्वे, किलै ब्वे-बाब अपड़ि बेट्यू खुण चैता मैना रुट्टि भिज्दा छा ? फागुण-चैता मैना सारी मा हौळ लगद. सट्टि-झंग्वरु बुतेणै तकऽतकि हूणी रांद. हैंकि सारिम् ग्यूँ-जौ बुत्याँ रंदिन. धांण-धंधौ बगत रांद. बसग्याळम् ज्वा नाजै चुंग्टि हुयीं रांद जन कि सट्टि-झंग्वरू, कोदू, दाळ-भट वु सर्रा ह्यूँद बटि खयेणू रांद त् #निम्ड़ि (समाप्त) बि जांद. वे जमऽना मा सासु-सुसरु तानासा हूँदा छा. तब जमऽना मा ब्वारी ब्वारी नि हूँदि छै, वु हूँदि छै एक इनि #कुंजण्या (नौकर) जैं थैं द्वी बेळ खाणु अर लारा-लत्ता दियेंदा छा. वीं फर क्य बितणी, वींकि क्य खौरि छन, क्य मणमण छन, क्वी नि पुछदु छौ. इलै वींकऽ ब्वे-बाब मैत बटि वीं खुण लत्ता-कपड़ा, खाजा-बुखणा, स्वाळ-पक्वड़ि अर भुरीं रुट्टि वींकऽ सैसुर पौंछादा छा. यां खुण कक्खि-कक्खि चैत्विळ बुलदन. चैता मैना जु गीत लगए जंदन वूं खुण बि चैत्विळ बुलदन. कक्खि-कक्खि चैत्वळ्यू खुण #भेंटुलि बि बुलदन. हौर बि भौत बान्यू च यीं चैत्वळ्या बारा मा पण पैलि यीं कथ्था थैं हरकै-फरकै कि दिखदाँ.
धनेसै दीदी बिवयीं च भण्डाली गौं मा. धनेसा ब्वाडौ नौनु च राजन. राजन धनेस से जेठु च. पढ़ै छोड़ी हौर बथू मा वूँकि हुड़ातुड़ि (कम्पटीशन) चनी रांदि छै. धनेसै ब्वेन कल्यो कि कंडी भोरी अर द्वियूँ थैं फट्ये द्या भण्डाली गौं. अद्दा बाठम धनेस थैं तीस लगि. वु पाणि पीणू ग्या. धनेसन कंडि राजन मा द्या. तब राजन बि ग्या पाणि पींणू खुण. जब राजन पाणि पे कि आ त् चितै ग्या कि धनेसन् कंड्डिम् #राऽळ-चाऽळ (अस्त-व्यस्त/वस्तुओं की इधर से उधर की गयी अव्यवस्थित अवस्था/छुपाया हुआ/चोरी किया हुआ) कैर्यालि. पुछे गि धनेस- ‘‘कतगा पक्वड़ि खैनि तिन ?’’ धनेसन् बोलि- ‘‘एक.’’ भस, फिर राजन अर धनेस मा पक्वड़ि खाणै हुड़ातुड़ि लगि ग्येन. एक तु खैलि त् एक मि खौलु. पैलि राजनन् बराबरि कनु खुण एक पक्वड़ि खा. तब हैंकि बि खै द्या.हैंकि किलै खा भै ? अर दंड. चोरी पक्वड़ि खाणौ डांड. एक तु खैलि, एक मि खौलु’’ बोलि-बोली वून सर्रि कंड्डि रीति कै द्या. अर दीद्या सैसुर जैकि बि वून वन्नि खांदि दाँ #रंगसळा-रंगसोळ (स्वयं अधिक से अधिक खाने के लिए की जाने वाली जद्दो-जहद) मचै द्या. एक तु खा, एक मि खौलु कऽ चक्कर मा वून दीद्या बांठा पर्वंठा बि चपकै द्येनि. एक रंगतदार कथ्था च.
यीं कथ्था पैथर च #घेरा’’ कथ्था. यीं कथ्थै पवाण वूंकि नौ धन बटि करीं च, पूरा एक पेज मा. जाँकु मनोज जी कु सात-आठ लैनू मा इन निचोड़ कर्यूँ च- ‘‘पैलि अर अब मा इ फरक ह्वेगे कि अब नौं आधार कैकि जाति, धर्म बोध नि हूंद, जन्नि नौं एक जाति-वर्गा छन, वन्नि दुसरा बि छन. अच्छु च धीरे-धीरे या असमानता बि खत्म ह्वे जाण चयेणी, अर समाज तैं विभिन्न आडम्बरों व भेद-भाव से जतगा जल्दी हो भैर ऐ जाण चयेणु च.’’
हैंकि सबद्वी गच्छि इन च- ‘‘आज बि हमारा समाज मा कुछ इन सामाजिक घेरा छन जु हम तैं अब्बि बि अग्नै बढण से रोकदा छन. मनुष्य हूणा नाता इ हमारि प्राथमिकता हूण चयेणि कि समाज मा जतगा बि विसंगति छन या धर्म-जाति आधार पण ज्यू बि ऊंच-नीच का घेरा छन वूंतैं दूर कैरि भैर आण चयेणु अर एक आडम्बर रहित समाज कु निर्माण हूण चयेणु च. कानि कि छांछ छोळी ज्व नौण हतम आंद वऽ इन च- सुरेन्द्र अर अवतार दगड़्य छन. द्विया बीरोंखाळम् नौकरि कर्दन अर एक्कि भित्रम् रंदन, खंदन अर सिंदन. समाजौ मनख्याता मधि आरु चलयूँ च. सुरेन्द्र छुट्टि जात्यू बणै द्या अर अवतार बड़ि जात्यू. अवतारौ एक हैंकु दगड़्या बि इक्कि नौकरि कर्दु, जैकु नौ कैलाश च. वन त् कैलाश दिल्लि जना सैर मा रयूं च, जक्ख जात्यूं फर बिंड्डि कच्वरा-कचोर नि करे जांद पण गढ्वाळ्म ऐकि वू बि वन्नि ग्याड़ु-कु-ग्याड़्वी ह्वे जांद. कैलाश थैं जब पता चल्दु कि अवतार सुरेन्द्र दग्ड़ि खांदु त् वु जरा टिमणै सि जांद. ब्वाद- ‘‘कट्ठा सींण तक त चल क्वी बात नी, पण तुम कट्ठा खाणा बणै कि बि खांदो ?’’ हौर ऐथर जैकि तब अवतार कैलाश थैं अढ़ांदु- ‘‘जु वो च, मी बि वी छौं. क्य हमारि दोस्त्यू आधार हमारि जाति च ? ... जब इतगा पैड़ी-लेखी बि हमारि सोच वा ही रैलि त फेर क्या फैदा च बुद्धिजीवी हूणौ ?’’

धौ-धौ, मनोज जी, मि आपा 
#ध्यौवूँ (विचारों को) मा #हंग्यवर्त (समर्थन) हूणू छौ. घड़ेक यीं बात थैं गुण्ये लिंदाँ कि जब बसग्याळम् गदना अंदन, रौगुण-बौगुण आंद तब गदनौं मा कतगा गादौ आंद, किचील, गू-मूत सौब इकराळ ह्वे जांद. गदनौ पाणि गंद्दु ह्वे जांद. यु पाणि छाळु कक्ख बटिनि हूँदु ह्वलु ? मूड़ि (नीचे) बटि कि मत्थि बटि ? क्वी बि बुद्धिजीवी बोललु कि पाणि मत्थि बटि छाळु हूंद आंद. खौड़ भितनै बटि भैरौ सुरेंद, भैर बटि भितनै कु ना. मनोज भट्ट जी आपन गदनु मत्थि बटि छाळु कैरी, आपने खौड़ भितनै बटि सोरी, इलै मि आपौ खुण सादर प्रणाम कनू छौं. भौत #उबठुंगा (साफ-सुथरे) ध्यौ छन आपा. जुबराज रयाँ.
मनोज जी कि यीं पोथी पुलबैं मा कवि समीक्षक अर गितेर भैजी वीरेन्द्र पंवार जी पौड़ि बटि लिखणा छन कि- ‘‘ गढ़वालि कथाकारूं थैं देस कि हौर भासों कि कथा-कान्यूँ कि तरां मॉडर्न स्टाइल मा कथा लिखणै कोसिस कन पड़लि. या कमी गढ़वळि कथा साहित्य मा अबि दूर नि होणी च. घेरा कि कथा-कान्यूं का प्लाट अच्छा छन, दगड़ा-दगड़ा कथा मनोरंजन व समाज तैं दिशा देणै सक्या भी रखदन, मनोज भट्ट कि यूँ कथौं मा रौंस, रस अर रस्याण बणै कि रखीं च. हालांकि येमा माऽरत बिण्डि लिखणा बाद ही औंदन. घेरा मा यमकेश्वर-ढांगु क्षेत्र मा बोले जाण वळि गढ़वालि भासै रौंस च. इनि हौर जगौं कि भासा मा बि साहित्य छपी भैर आलु त् ऐथर गढ़वाळि भासौ मानक स्वरूप बणौंण मा सुबिधा होलि.’’
सगड़ कथ्था वूँ नौनौं कि कथ्था च जु इसकूल नि जांदा छा, बाठौं मा लुकि जांदा छा. ‘‘घर में छोरा और नगर में ढिंढोरा वळा पखणै अन्वार यीं कथ्था मा दिखे सकेंद. बाळापनी बटि हमऽरा ब्वे-बाब, दै-दादा हमऽरा कपाळा पेट अंधविस्वासा पोथा-पुतड़ा भोरि दिंदन. जैकु ट्वट्टा (नुकसान) हम थैं सगळि उमर भुगतण पुड़्द. हमऽरा भित्र इतगा डौर ठिल्ये जांद कि हम संगता खबेस, भूत पिचास दिखण बैठि जदाँ. डाळम् खबेस, बुजगिलों खबेस. जु ब्वे-बाब हम थैं अंधविस्वासू से बचै कि राखुन त् कतगै #घेरा हमऽरा ओर-पोरा अफि उग्टि जाला.
घेरा कथ्था संगेळम् टुप-टपप पंद्रा कथ्था छन. जु कि गौं-गौळा माटा मा छतपति छन. एक सौ इकौत्तर, पढ़ाकू, भ्यूंळ पुंगड़ी गोट, निल्लु गौड़ी, भौनऽ म्याळ, बींणी जनि रंगतदार कथ्था छन जु यमकेस्वर-ढांगु जना कि भासा, रौ-भौ थैं बिंगांदन.
जरा भासा फर बुनू छौं. भासा एक घैणा बसग्याळै छमणांदि बरखा च, ज्व गगराट कै बरखणि च. भासा एक इनि बौगदि नदि च ज्व समसम-समसम बौगणी च, जैंकऽ ऐथर क्वी अड्ये नि छन. भासा एक मयळ्दू सि गीत च, जैकऽ दग्ड़ि हारमुनि, तबला, ढोलक, साइड रिदम्, बंसुरी बजणी छन. गितांगौ यूँ बाद्य यंतरू फर कंटरोल रांद. हारमुनि बजणी पैला काळा फर अर तबला बजणू चौथा काळा फर त् मिजान नि आंद. क्वी बि यंत्र कैंडा (नियंत्रण/अनुशासन/मर्यादा/कायदा) फर हूँद. इन्नि भासा मा बि च. भासा बि कुछ कैंडा छन, हम वूँ थैं बिस्रि जौला त् सौब बिरसु ह्वे जालु. हम थैं क्रिया पदू फर ब्याकरणा लब्ध सोर लगाण पोड़लु, तब भासै स्वाणि सि मुख्ड़ि हमsरा ऐथर आलि.
मनोज भट्ट गढ़्वळि जी थैं भौत-भौत बधै. अणगम च कि वु कथ्था साहित्य थैं हौर ऐथर ल्हिजाला.
गौं-किबर्स, पैडुल स्यूँ, पौड़ि

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ