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Prakritik Sundarta Ke Sath Dhamik Astha Ka Kendra Amarkantak प्राकृतिक सुंदरता के साथ धार्मिक आस्था का केंद्र अमरकंटक

 प्राकृतिक सुंदरता के साथ धार्मिक आस्था का केंद्र अमरकंटक


      पर्यटन की दृष्टि से भारत वर्ष अत्यंत समृद्धि राष्ट्र है। एक और यहां ऐसे स्थल हैं जहां प्रकृति ने अपनी खूबसूरती बिखेरने में कोई कंजूसी नहीं की है तो दूसरी ओर ऐसी जगहों की भी कमी नहीं है जो भारत के लंबे व वैभवशाली अतीत के गवाह रहे हैं। इसके अलावा यहां बहुत धार्मिक महत्व के स्थान हैं जो पर्यटकों को अपनी ओर आकृष्ट करते हैं, मध्यप्रदेश का अमरकंटक एक ऐसा पर्यटन स्थल है जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ पौराणिक एवं धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। महर्षि मार्कंडेय ऋषि वशिष्ठ महर्षि अगस्त्य के बाद आदिगुरु शंकराचार्य की तपोभूमि आम्र कटैया अमरकंटक को ही माना जाता है महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य मेघदूतम में इस स्थान का वर्णन आम्रकूट के नाम से किया है। रामायण में आए उल्लेख के अनुसार जब रावण सीता का अपहरण कर पुष्पक विमान से इस स्थान के ऊपर से गुजर रहा था तब वह यहां के सौंदर्य से इतना अभिभूत हुआ कि उसने अपना विमान यहां उतार कर अपने आराध्य शिव की पूजा अर्चना की 1065 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, यह जगह विद्यांचल पर्वत की करधनी कहलाती है। यहां से विद्यांचल एवं सतपुड़ा पर्वत श्रेणी या शुरू होकर पश्चिम भारत की ओर बढ़ती जाती हैं महाकवि बाणभट्ट ने अपने महाकाव्य कादंबरी में इसके पूर्व में शैल शिखरों से लिपटे हुए सघन में घुसे दहाड़ हुई गाज की ज्वाला का उत्कृष्ट वर्णन किया है। यहां से भारत की पांचवीं सबसे बड़ी नदी नर्मदा और सोन का उद्गम हुआ है। नर्मदा पश्चिम की ओर आगे बढ़ जाती है जबकि सोन पूरब की ओर बहती है।

        नर्मदा नदी कहां से निकलती है वहां वर्षों पहले बास कावन था लेकिन बाद में  बांस के वन खत्म हो गए। यहां नर्मदा का एक मंदिर बना दिया गया है। इस मंदिर के प्रांगण के एक कोने में बने गोमुख में नर्मदा नदी का पानी गिरता है जिसे एक विशाल कुंड में एकत्रित किया जाता है। यहां से यह पानी एक छोटे से नाले से पश्चिम दिशा की ओर आगे बढ़ता है और इस तरह नर्मदा नदी का स्वरूप बनता है। नर्मदा नदी का यह कुंड  तथा मंदिर 18 वीं सदी में छत्रपति शिवाजी के वंशज नागपुर के राजा नाना साहब रावण ने बनवाया था। जानते हैं कि अमरकंटक कैसे पहुंचे।

     अमरकंटक जाने के लिए सबसे पहले बिलासपुर या कटनी होते हुए अनूपपुर मध्यप्रदेश पहुंचना पड़ेगा। वहां से इन दोनों स्टेशनों के बीच पेंड्रा रोड स्टेशन जाना पड़ता है। यहां से अमरकंटक मात्र 42 किलोमीटर है। पेंड्रा रोड से अमरकंटक बस या जीप में एक से डेढ़ घंटे में पहुंचा जा सकता है। 


कहां रुके?

     अमरकंटक में मध्य प्रदेश लोक निर्माण विभाग के विश्राम भवन तथा विश्राम ग्रह है जहां कर्म से जिलाधीश शहडोल तथा कार्य पालन मंत्री लोक निर्माण विभाग द्वारा आरक्षण प्राप्त किया जा सकता है। यहां साडा का होटल और मध्य प्रदेश का पर्यटन बंगला भी पर्यटकों के लिए उपलब्ध रहता है। इसके प्राइवेट होटल और धर्मशाला भी है जहां कमरे किराए पर प्राप्त किया जा सकते हैं।


 दर्शनीय स्थल


         यूं तो पूरा अमरकंटक की ही देखने योग्य स्थान है पर यहां कुछ ऐसी खास जगह है जिन्हें हर सूरत में देखना जरूरी है देखना चाहिए जैसे कपिल धारा एवं दूध धारा: नर्मदा के उद्गम से 8 किलोमीटर दूर घने वन में नर्मदा नदी का प्रथम जलप्रपात कपिलधारा पड़ता है जहां नर्मदा का पानी लगभग 25 मीटर की ऊंचाई से दो धाराओं में विभक्त होकर गर्जना के साथ गिरते हुए पूरी खुली घाटी को जल के महीन कणों से भर देता है। यहां धारा के मार्ग पर बड़ी सिलाई पड़ी हैं जिस से टकराकर बहते पानी की विकरालताकई गुना बढ़ जाती है। माना जाता है कि यही महर्षि कपिल की तपोभूमि भी रही थी। यहां से 1 किलोमीटर की दूरी पर नर्मदा नदी का दूसरा जलप्रपात दूध धारा है जहां नर्मदा अपने पूरे वेग से एक चौड़े पार से नीचे गिरती है।


 माई की बगिया एवं सोनपुड़ा


        दिशा की ओर 1 किलोमीटर की दूरी पर माई की बगिया नामक स्थान है। यहां फलों के वृक्ष के अतिरिक्त गुलाबकावर्ली फूल के पौधे पाए जाते हैं जिसका अर्थ नेत्र विकारों में बड़ा लाभकारी होता है। इसी से लगे सोमपुड़ा नामक स्थान से सोन नदी का उद्गम होता है। अपने उद्गम से कुछ मीटर बाद ही एकदम पर्वत की खड़ी गहराई में पुरवा विमुख होकर गिरती है। यहां से कई किलोमीटर दूर तक वन भूमि तथा निचले पर्वत शिखर दिखाई देते हैं। इस स्थान पर सूर्य उदय का बड़ा ही रमणीय नजारा दिखता है। सूर्योदय के समय यहां के प्राकृतिक सुंदरता को देखकर आंखें टिक जाती है।


 दुर्गाधारा 


        अमरकंटक से गौरेला जाने  वाले मार्ग पर 6 किलोमीटर दूर दुर्गा धारा नामक जलप्रपात है। इस जलप्रपात को सड़क से ही देखा जा सकता है। यहां ऊंचे पर्वत से नीचे गिरती हुई जलधारा मनोरम दृश्य उपस्थित करती है।


 कलचुरीकालीन मंदिर

      अमरकंटक में निर्मित कलचुरी कालीन मंदिरों के खंडहरों की शोभा आज भी निराली है यह उस काल के स्थापत्य कला के बेहतरीन नमूने माने जाते हैं लेकिन उचित देखभाल के अभाव में यह मंदिर दिन-ब-दिन खस्ताहाल होते जा रहे हैं। यह मंदिर एक प्राचीन सूर्य कुंड के दोनों ओर बने हैं। इस मंदिर में शिव जी  के एक त्रिमुखी मंदिर के शिखर के निर्माण को खजुराहो के मंदिर के समतुल्य माना जाता है।


 कबीर चबूतरा


         अमरकंटक से 5 किलोमीटर दूर पूर्व की ओर नर्मदा के दक्षिण में कबीर चबूतरा नामक रमणीक स्थल है जहां पर संत कबीर ने गहन तपस्या की थी ऐसा माना जाता है।

 इस तरह अगर आप ऐसी जगह की तलाश में है जिसकी खूबसूरती आंखों को सुकून दे और धार्मिक माहौल मन को शांति प्रदान करें तो अमरकंटक आपके भ्रमण के लिए उपयुक्त जगह है।

 

    रूपेश गुप्ता


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