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Durgam Tirthsthal Yamnotri दुर्गम तीर्थ स्थल यमुनोत्री

 दुर्गम तीर्थ स्थल यमुनोत्री

         भारत के उत्तराखंड में यमुनोत्री गंगोत्री बद्रीनाथ व केदारनाथ की यात्रा बड़ी सुखद है। पुराण शास्त्रों में इन पवित्र तीर्थों के बारे में व्यापक महत्व-चर्चा है। इस पर्वतीय यात्रा में समूचे भारत से हजारों लोग देव दर्शन को आते हैं। वर्तमान समय में यह यात्रा बहुत सुगम हो गई है। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून व ऋषिकेश से नित्य वसु अटैक्सिया यात्रियों को दर्शन कराने ले जाती है।

         रेलवे लाइन देहरादून तक जाती है दिल्ली भोपाल को जयपुर के साथ लखनऊ से भी रेल विभाग ने यात्रियों को इस तीर्थ से जोड़ दिया है अतः अब यह यात्रा दुखदाई और कष्टप्रद नहीं रह गई है। लगभग सभी स्थानों पर धर्मशालाएं,  लॉज गेस्ट हाउस बने हुए हैं। होटल वह भोजनालय में उत्तरी एवं दक्षिणी क्षेत्रों का भोजन भी सुलभता से प्राप्त हो जाता है। इस यात्रा में बड़ा आनंद आता है। उत्तराखंड की यात्रा 20 जून से प्रारंभ हो जाती है। जो सितंबर अक्टूबर के अंत तक चलती है। उत्तराखंड के चारों धामों की यात्रा के लिए कम से कम सामग्री ले जानी चाहिए। अब यात्रा में पैदल कम चलना होता है घर से जलपान सामग्री उन्हीं दस्ताने खटाई टॉर्च सूती वह मोटे कपड़े साथ रखना बहुत जरूरी है। पहाड़ों पर यह वस्तुएं महंगी मिलती है।


        अतः घर से सामग्री ले चलना श्रेयस्कर होता है। कंबल धर्मशाला में सुविधा से किराए पर मिल जाते हैं। धर्मशाला में भोजन पकाने के हल के बर्तन भी मिल जाते हैं। इस यात्रा में कुल मिलाकर किसी प्रकार की कोई कठिनाई नहीं होती है।

         इस यात्रा में यह ध्यान रखना चाहिए कि किसी अपरिचित फल पुष्प व फूलवती को मुख में नहीं डालना चाहिए। इसे सॉन्ग ना छूना भी कष्ट दे सकता है। यहां के अनेक फल पुष्प जहरीले होते हैं जो  समस्या खड़ी कर सकते हैं। यात्रा में चलते हुए पर्वतीय जल को पीना भी हानि प्रद है। जल को किसी बर्तन में लेकर एक 2 मिनट स्थिर होने के उपरांत पीना चाहिए, क्योंकि जल में पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े मिले रहते हैं वह नीचे बैठ जाए तभी सेवन करना उचित है। ऋषिकेश से यमुनोत्री के दो मार्ग हैं। एक टिहरी होकर है जो लगभग 165 किलोमीटर है। दूसरा मार्ग देवप्रयाग होकर जाता है जो लगभग 180 किलोमीटर है। इसी प्रकार यमुनोत्री से गंगोत्री 120 किलोमीटर है गंगोत्री से केदारनाथ 150 किलोमीटर है केदारनाथ से बद्रीनाथ 115 किलोमीटर पर स्थित है सभी मार्गों पर टैक्सी मोटर बस सेवा सुलभ है। कुछ स्थानों पर 10 से 15 किलोमीटर पैदल यात्रा करनी होती है। उत्तराखंड की यात्रा ऋषिकेश से प्रारंभ करनी चाहिए। यहां से 52 किलोमीटर दूर देवप्रयाग एक अच्छा स्थान है। यहां पर गंगा और अलकनंदा नदी का पवित्र संगम है। गंगा जी के ऊपर बने मंदिर देखने योग्य हैं जिसमें श्री रघुनाथ जी आधे विश्वेश्वर जी गंगा यमुना की प्रसिद्ध मूर्तियां है। इसे सुदर्शन क्षेत्र कहा जाता है। यात्री यहां पर अपने पितरों  का श्राद्ध भी करते हैं।

         यमुनोत्री समुद्र तल से 10000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यात्रियों के ठहरने के लिए यहां अनेक धर्मशालाएं हैं। यहां गर्म पानी के अनेक कुंड हैं जिनमें जल खोलता रहता है। यात्री कपड़े चावल या आलू बांधकर उस में डुबो देते हैं जो कुछ ही समय में पक जाते हैं। इस कारण यात्री यहां पर भोजन  चूल्हे द्वारा नहीं पकाते। इन कुंडों में स्नान करना संभव नहीं है और यमुना जी का जल इतना शीतल है कि उसमें भी स्नान करना कठिन है।

यमुनोत्री का स्थान संकीर्ण है। छोटी सी धर्मशाला है। यमुना जी का भव्य मंदिर है। कहते हैं कि महल स्थित जी का यहां आश्रम था। सूर्यपुत्री यमराज सहोदरा कृष्णप्रिया कालिंदी का उद्गम स्थान अति भव्य है। इस स्थान की शोभा आदित्य है। यमुनोत्री को जिस मार्ग से जाते हैं उसी मार्ग से 30 किलोमीटर वापस गंगानी लौट आना चाहिए। यहां से उत्तरकाशी 8 किलोमीटर है जो उत्तराखंड का प्रधान तीर्थ स्थल है। यहां अनेक प्राचीन मंदिर है जिसमें विश्वनाथ जी का मंदिर तथा देवासुर संग्राम के समय छुट्टी हुई शक्ति मंदिर के समक्ष त्रिशूल अति दर्शनीय है। इसी मंदिर के निकट गोपेश्वर परशुराम भैरव दत्तात्रेय अन्नपूर्णा रुद्रेश्वर और लक्षेश्वर के मंदिर हैं। इसी के ब्रह्मकुंड हैं जहां स्नान पित्र तर्पण का विधान है। उत्तरकाशी गंगा असी और वरुणा नदी के मध्य बसा हुआ है।


नोट: यह लेख पंजाब केसरी अख़बार से लिया गया है जो बहुत पुराना है

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