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Kumaun Ke Samrat कुमाऊं के सम्राट

 पुस्तक का नाम: कुमाऊं के सम्राट (पहला भाग)

लेखक: चिन्तामणि पालीवाल
प्रकाशक: कुमाऊं साहित्य सदन, दिल्ली
प्रकाशन वर्ष: 1986 (द्वितीय संस्करण)
प्रथम संस्करण: 1971
पुराने कुमाउनी साहित्य प्रकाशन की इस कड़ी में आज एक नई पुस्तक और उसके लेखक के साथ परिचय। पुस्तक का नाम है 'कुमाऊं के सम्राट'। लेखक हैं चिन्तामणि पालीवाल। यह पुस्तक चार खंडों में है। इसमें कुमाऊं के शासकों का वर्णन है। रचनाकार ने बहुत रोचक तरीके से इतिहास को कविता में गूंथा है। इस काव्य में एक नई विधा से भी परिचय होता है, जिसमें जनता और कवि का वार्तालाप है। बहुत रोचक। बहुत आत्मीय। पहले जनता रचनाकार चिन्तामणि से उनके हालचाल पूछती है। कवि उसका जबाव देते हैं फिर काव्य शुरू होता है। आइये इसका आनंद लेते है
जनता का परामर्श
चिन्तामणि जै जै राम क्य छैं हालचाल।
कुमाउनी क्या रचना करै आजकल।।
भलि छैं कुशल बात भल छै कि नना।
आज कल तुम कभै सभा में नि आना।।
शैलानी किताब तुम क्य भलि बनैछा।
साहित्य मंडल बै जो तुललैं छपैछा।।
मेला सोमनाथ लकि सुन्दर लैखछा।
सोमनाथ मेवा तुम कभणि देखछा।।
बलिदान खन्डन लै अमीन जमीन।
शरनार्थी पुरुषार्थ कविता प्रवीन।।
श्री राम विनोद लै डहौवो का हाल।
धन्यवाद पत्रिका में जबाव सवाल।।
दिल्ली की झलक तुम क्य भलि बनैछा।
कुमाउनी जनता लै खूब अपनेछा।।
उमजि उतार तुम समाज क चित्र।
सब रस भाव उमैं बोहोते विचित्र।।
सबकुछ लिखी है छा जमाना का हाल।
आब कुछ और लिखौ पराचीन काल।।
पैलि बै हमरा एति कस कस छीय।
राजा महाराजा लोग को करि रौछीय।।
पैलि राज कैल कय बाद में कोहय।
सब कुछ लिखी दीयो को कति रहय।।
हमरा एतिक कुछ निछ इतिहास।
दंतकथा मिलि जानी कैक कोका पास।।
हमरांया कत्यूर जो देवता नाचनी।
डनू हांति पैलि बटि रजा छीया कनी।।
जोर जोरै धात लगै की जगरीया।
सांचि झुटि क्य खबर छीये कि निछीया।।
तुम कणि य बातक हनल क्ये ज्ञान।
एपार लिखीया आब धरि बटि ध्यान।।
और एक गहाली जो मालसाई गीत।
मालसाई राजुला की बतानी पिरीत।।
यस कनी एक छीय राजा मालसाई।
विकी राणि काम सेणु सुन्दर सुहाई।।
हरि इच्छा राजा राणि है गोय विछोह।
मालसाई मन मजि हैई गोय मोह।।
राणि क वियोग मजि रजाछा बैचेन।
दिन उकै झुक निछा दिन निछा रैन।।
तब कनी स्वैण मजि मिलिगे राजुला।
तब जै उ राणि कणि भुल बिलकुला।।
यस कनी राजुला ऐ मालसाई पास ।
मालसाई भोटगय खोज कैं तालास।।
यस कनी जगरीया इनरी कहानी।
हुडक व्यकुल बजै गीद यों गहानी।।
यक लकि सब तुम लिखो इतिहास ।
सबु कणि सुणै दियो य खबर खास।।
...........................
चिन्तामणि
श्रीमानो नमस्कार भली छै कुशल।
एलै बेर पहाड़म भलि छै फसल।।
बरखा कतुक है रे कसी हैरे गाड़।
आजकल बड़ भले मान्योंछ पहाड़।।
शैलानी किताब लेखि मेला सोमनाथ।
कुमाऊं का समराट सुणै साथै साथ।।
एक छा यां कुमाउनी साहित्य मंडल।
शैलानी छापीछ वीलै करि बै अकला।।
धन्यवाद पत्रिका लै दिल्ली की झलक।
जतुक किताब म्यरा बनि अब तक।।
सबु हैबे ठुलि छा य कुमाऊ सम्राट।
उमजि छै कत्यूरौका का सब ठाठ बाट।।
सूर्यवंशै वंशावली कत्यूरौका का ठाट।
कार्तिकेयपुर बटि रंगीली बैराट।।
पैलि बै यों सूर्यवंशी रघुवंशी हया।
कुमाऊं में ऐ बटि यो कत्यूर है गया।।
सूर्य का सुपुत्र हया मनु महाराज।
उनरा पै सूर्यवंशी हया भौत राजा।।
धुर्व प्रह्लाद और सगर दिलीप।
भगीरत सगीरत तब तेज सीप।।
राजा अज दशरथ श्री राजाराम।
बड़ा बड़ा महाराज बल बुद्धिधामा।।
उई वंश मजि फिर शालीवाहन हया।
कलजुग आदि मजि कुमाऊं में गया।।
जोशिमठ राजधानी पैली कै बनौई।
कार्तिकेयपुर फिर राजधानी हई।।
बलवाना बुद्धिवान हया गुण धाम।
पढि लिया सुणि लिया लेखीया है नाम।।
जसा जसा राजा हया अन्याई सन्याई।।
इमजि छा यथा योग्य सब दरसाई।
फिर सुणै मालसाई गीद जो गहानी।
इमजि देखिया सब इनरी कहानी।।
राजा मालसाई और राजुली सौक्यांण।
स्वैंण में लागिछ पैली उनरी पछ्याण।।
राजुला ऐ बागेश्वर रंगीला गीवाड।
दुनागिरी डनाहणि चीतैली की गाड़।।
विराट नगरी मजि ऐईगे राजुला।
मालसाई देखि बटि करि गेई भूला।।
नहैगे वापिस वांबै निकै मुलाकात।
दरशन करि गेछा निकया के बात।।
तब फिर मालसाई भोटान हैं गया।
राई दल पद्यदल फौज लीवै गया।।
बनि गया मालसाई जोगी जाट धारि।
घर घर भीक मांगी बनि वै भिकारी।।
भोटिया दगडा उति करि छै लडाई।
राजुला कै जिति व्यवै बै लि आई।।
पडिया आघील सब मालूम है जाल।
रसीक पाठक कों कणि खूब रस आल।।
के कसर हलि जब लेखीया मिहणि।
जनता क सेवक में हय चिन्तामणि।।
पत म्यरलिखि लिया के भुलिया झन।
चिन्तामणि कुमाउनी साहित्य सदन।।
सीताराम बाजारम चौरासी छै घंटा।
दिल्ली में विख्यात छा य अन्ठ नीछा सन्टा।।
अल्मोड़ा पाली पछौ कमराड रनू।
डाकखाना भिकियासैण वला नया कनू।।





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