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Muskyamar Rahasya aur Romanch Se Bharpur ek Upnyas मुस्क्यामार रहस्य और रोमांच से भरपूर एक उपन्यास



        नमस्कार दोस्तों आज हम अपने यूट्यूब चैनल खुदेड़ डाँडी काँठी पर एक नया कार्यक्रम हमने शुरू किया है, जिसमें हम उत्तराखंड के साहित्यकारों द्वारा लिखी किताबों का रिव्यु करते है। अब किताब खरीदने से पहले यहां पर आप जान पाएंगे कि इस पुस्तक में क्या है और यह आपकी मन मुताबिक है या नहीं है, फिर आप डिसाइड कर सकते हैं आपको यह पुस्तक लेनी चाहिए या नहीं लेनी चाहिए। 

        दोस्तो यूट्यूब पर बहुत सारे बुक्स रिव्यू के वीडियो आपको मिल जाएंगे जो कि हिंदी और इंग्लिश में आपको मिलेंगे हिंदी, अंग्रेजी में बुक्स रिव्यू बहुत हैं इस तरह के वीडियो, जो आपको मिलेंगे लेकिन गढ़वाली, कुमाऊनी, जौनसारी पुस्तकों का और इन भाषाओं में लिखने वाले साहित्यकारों की पुस्तकों का रिव्यू बहुत कम हमें यूट्यूब पर मिलेगा और अगर मैं कहूं कि गढ़वाली कुमाऊनी जौनसारी भाषा की पुस्तकों का कोई रिव्यू यूट्यूब पर है तो मुझे अभी तक नहीं मिला है। यह पहला रिव्यु है हमारे द्वारा जो हम कर रहे हैं राकेश मोहन खंतवाल जी की पुस्तक जो उनकी नॉवेल है मुसक्यामर का आशा है रिव्यू आपको पसंद आएगा। यहां जो रिव्यू होगा किताबों का चाहे वह भाषा गढ़वाली, कुमाऊनी, जौनसारी कोई भी हो लेकिन जो रिव्यू होगा उन पुस्तकों का वह हिंदी में ही होगा और उत्तराखंड के साहित्यकारों द्वारा लिखी पुस्तकों का रिव्यु यहां पर किया जाएगा। चाहे वह हिंदी में है, गढ़वाली में है, कुमाऊनी में है, जौनसारी किसी भी भाषा में या अंग्रेजी में तो इनका रिव्यू हम यहां पर करने करेंगे। इस तरह से रिव्यू करने का मुख्य कारण यही है कि काफी समय से लगभग 1 वर्ष से ज्यादा हो चुका है पुस्तक ऑनलाइन और ऑफलाइन हम लोगों तक पहुंचा रहे हैं, और वहां पर दिक्कत यह आती है कि काफी लोग पूछते हैं  कि यह पुस्तक ठीक है या नहीं है? कैसी है? क्या यह लेनी चाहिए?, तो इस तरह के बहुत से सवाल हमारे पास आते हैं, और हर बार उन्हें लिख कर बताना पड़ता है।  तो यहां पर वह हमारे वीडियो देख कर भी विचार कर सकते हैं कि उन्हें यह पुस्तक, यह नॉवेल जो भी है वह लेनी चाहिए या नहीं लेनी चाहिए। साथ ही हम यह भी बताएंगे कि यह पुस्तक आपको कहां पर मिल सकती है, यदि यह हमारे पास उपलब्ध है तो हम जरूर आपको बताएंगे और अगर यह पुस्तक हमारे पास नहीं मिलती है तो उस स्थिति में हम आपको कोशिश करेंगे कि आपको Amazon, फ्लिपकार्ट, उर्दू बाजार या कहीं पर भी यह किताब उपलब्ध होगी आपको उसका लिंक उपलब्ध करवा दिया जायेगा, जो कि हमारे ब्लॉग या वीडियो डिस्क्रिप्शन में होगा। अगर यह हमारे पास मिलती है तो हम आपको यहीं से ही उपलब्ध करवाते हैं। आप चाहे भारत में कहीं भी रह रहे हैं हर जगह हम इसे पहुंचाते हैं। जहां कोरियर सुविधा उपलब्ध है वहां पर कोरियर के द्वारा हम पुस्तके आप तक पहुंचाते हैं और जहां पर कोरियर सुविधा उपलब्ध नहीं है वहां पर भारतीय डाक द्वारा आपको पहुंचाई जाती है। यदि किताब आपको ऑनलाइन नहीं मिल रही है कहीं से भी तो अगर बुक के ऊपर लेखक का या पब्लिशर का कांटेक्ट नंबर अवेलेबल रहेगा जो अक्सर होता ही है तो वह हम आपको प्रोवाइड करेंगे, उसके बाद आप उनसे बात कर सकते हैं। वह आपको किताब भिजवा सकते हैं या नहीं, आप उनसे जानकारी ले सकते हैं। 

        अब हम पोस्ट को ज्यादा लंबी नहीं करेंगे इसलिए अब यहां पर हम आज एक नॉवेल रिव्यू करने जा रहे हैं जो मैं आपसे पहले भी बता चुका हूं और इस नॉवेल का जो रिव्यू होगा उसके बाद आप डिसाइड कर सकते हैं आपको यह लेनी है या नहीं लेनी है। यह जो पोस्ट है वह आप हमारे खुदेड़ डाँडी काँठी ब्लॉग पर पढ़ रहे हैं, और ऐसे ही और भी पोस्ट पढ़ने के लिए आप हमारे ब्लॉग को सब्सक्राइब कर सकते हैं और हमारे वीडियो देखने के लिए यूट्यूब पर आपको खुदेड़ डाँडी काँठी सर्च कर सकते हैं। वहां पर आपको वीडियो मिल जाएंगी। 

Garhwali Novel Musakyamar

        आप में से बहुत से लोगों ने इस नॉवेल को पढ़ भी लिया होगा बहुत से पाठको को हमने यह नॉवेल पहुंचाई भी है। यह नॉवेल जिन्होंने लिखी है वह साहित्यकार उत्तराखंड के पौड़ी जिले के गांव में ही रहते हैं और वहीं से अपना लेखन का कार्य करते हैं। गांव के जीवन को समझकर देखकर उन्होंने इस नॉवेल को अपने शब्दों में लिखा है। 

        यह कहानी है एक गांव की हालांकि इसका वास्तविक जीवन से कोई नाता नहीं है, लेकिन फिर भी कहीं ना कहीं यह हमारे वास्तविक जीवन को छूती है नॉवेल लिखी है उत्तराखंड के लेखक पौड़ी गढ़वाल ज़िले के लेखक राकेश मोहन खंतवाल जी ने जी हां आप बिल्कुल सही समझे हैं यह नॉवेल है मुसक्यामर। नॉवेल  के बारे में बात करने से पहले आपको बता दें कि राकेश मोहन खंतवाल जी गांव में ही रहे हैं वहीं से उनकी पढ़ाई हुई है इंटरमीडिएट तक उसके बाद उन्होंने आईटीआई किया है।  लेखन का कार्य अभी भी उनका जारी है और आगे आने वाली उनकी दो से तीन किताबें और है जिसमें नॉवेल, फ़िल्म पठकथा, उपन्यास है, और जीवनी पर आधारित पुस्तक भी इनकी आने वाली है। इससे पहले उनका एक काव्य संकलन भी आ चुका है जो कि मुंगरा की चोट है, यह भी गढ़वाली में ही है। बहुत अच्छा रेस्पॉन्स इसमें पाठकों का मिला है उनको। राकेश मोहन खंतवाल जी उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के मल्ला बदलपुर पट्टी के बबीना गांव से हैं। 

        इस पुस्तक के बारे में आपको बताएं तो यह पुस्तक कुल 96 पेज की पुस्तक है और 95 पेजों में यह उपन्यास 25 अध्याय में रखा गया है। समय साक्ष्य, देहरादून से यह उपन्यास ISBN के साथ प्रकाशित किया गया है। उपन्यास एक सामान्य गांव के जीवन पर आधारित है। हो सकता है ऐसा अपने आसपास में देखा भी होगा यह जो उपन्यास है इसमें कहानी है ऐसे जुड़वा भाइयों की जिनमें एक भाई बहुत ही दुष्ट प्रवृत्ति का है और दूसरा उतना ही शांत स्वभाव का है। एक खुद को बड़ा मानता है जो कि कुछ पल बड़ा है। दोनों भाइयों का नाम गबरु और झबरू है , गबरु जो है वह बड़ा है और झबरु छोटा है। इसी गांव में एक बुजुर्ग महिला रहती है जिन्हें यह बोडी (ताई) कहते हैं गबरु को बिगाड़ने में छामा बोडी का बहुत बड़ा हाथ रहा है। छामा एक पेंशनर है पति उनके स्वर्ग सिधार चुके हैं और उनके स्वर्ग सिधार जाने का कारण स्वयं छामा बोडी है उनको मच्छी खाने का बहुत शौक था। उनके इस शौक ने ही उनके पति को उनसे दूर कर दिया था। जीते जी कभी उन्होंने अपने पति की इज्जत नहीं की लेकिन उनके जाने के बाद अब वो उनके नाम के जागर लगाना पूजा करना आदि करती रहती है। हमेशा उसे यह लगता है कि उनके पति की हंत्या उस पर लगी है जिस वजह से वह परेशान रह रही है। और इसका ही फायदा उठाता है गबरु, जो उसे जगह-जगह पुछयरो के पास लेकर जाता है और उसके बदले उससे पैसे लेता है है। हमेशा कोई ना कोई पूजा करना हंत्या पूजना यही उनका काम था। इस कहानी में एक परिवार ऐसे हैं जो इस गांव में पिछली एक पीढ़ी से रह रहा है वह मूल रूप से इस गांव के नहीं है, इस परिवार में जगरी है, जगरी की बेटी मूसी और जगरी की पत्नी झाँपा तीन लोग हैं। 

        मूसी का झबरु के साथ प्रेम प्रसंग चल रहा है और इस बात का जब गबरू को पता चलता है गबरु को तो यह बर्दाश्त नहीं कर पाता है, और वो मूसी से शादी करने के लिए अपनी तरकीब लगाने लगता है। छामा बोडी ने एक पूजा करवाई जिसमें हंत्या पूजनी थी, रात को दोनों ही भाई गबरु और झबरु जगरी के साथ हंत्या पूजने गए लेकिन उस दौरान गबरु ने जगरी को पीट दिया, क्योंकि उसने उसके अनुसार काम नहीं किया। यहां गबरु और जगरी के बीच बहस होती है और उसी बहस के कारण दोनों में लड़ाई हो जाती है जिस वजह से गबरु जगरी को मारता है। लड़ाई का कारण है छामा ने जो गबरु को पैसे दिए थे खाड़ू के लिए उसके बदले गबरू खाड़ू की एक लोहे की प्रतिमा जगरी को थमा देता है, जिस पर जगरी कहता है कि मुझे असली खाडू चाहिए यह लोहे का नहीं चलेगा। गबरु कहता है यही है इसी में ही जो करना है कर। यहां पर गबरु एक बहुत अच्छी बात कहता है उसका समाज से भी यह सवाल है कि "जब चांदी की गाय से गाय दान हो सकता है तो, लोहे के खाड़ू से हन्त्या क्यों नहीं पूजी जा सकती। वाकई में सभी कुछ तो हमने अपने अनुसार ही बदल दिया है तो यहां पर हन्त्या लोहे के खाडू से क्यों नहीं पूजी जा सकती है। 

        गबरु का जगरी को मारना यह उसके लिए बहुत घातक सिद्ध होता है यहां मूसी गबरु से पहले ही चिढ़ी हुई थी क्योंकि वह उससे शादी करना चाहता है, और मूसी  झबरू को चाहती है। दूसरी गलती उसने यह भी कर दी कि जगरी को उसने पीट दिया उसकी हड्डियां तोड़ दी। यहीं से कहानी का राजनीतिक मोड़ लेना बन जाता है। यह राजनीतिक मोड कैसे लेता है?, इसे विस्तार से जानने के लिए आपको यह पुस्तक पढ़नी पड़ेगी। गांव का प्रधान और गबरु दोनों बहुत अच्छे दोस्त हैं इनका आपस में बैठकर खाना पीना चलता है, लेकिन जब मूसी अपनी समस्या को लेकर गांव में पंचायत बैठा देती है और पंचायत प्रधान के घर में ही राखी जाती है। यहाँ वो मुद्दा उठती है अपने पिता के साथ हुई मारपीट का ऐसे में पंचायत के सामने प्रधान को भी पक्ष बदलना पड़ता है। अब यहाँ झबरु गबरू के बचाने और  सुधरने के लिए पंचायत से एक मौका  और उसके अच्छे व्यव्हार के कारण पंचायत फैसला  लेती है की झबरु की गारंटी पर गबरू को सुधरने का एक मौका दिया जाए। लेकिन गबरु तो गबरू है वह कहां किसी से डरने वाला है वो नहीं मानता है, वो झबरु के बहुत समझाने पर भी नहीं समझता है। पंचायत वाले दिन से ही गबरु ने अपना टारगेट प्रधान को बना दिया था। इस बार जो शिकार बना वह प्रधान बना और इतना खतरनाक हो गया की प्रधान ही नहीं बल्कि प्रधान का पूरा परिवार बाल-बाल बचा है गबरू के इस नए कारनामे से।  गबरू ने ऐसा क्या किया इसके लिए आपको पढ़नी होगी मुसक्यामर। प्रधान तो बच गया लेकिन इसके बाद हत्या करने की कोशिश के आरोप में गबरु को पटवारी चौकी में बंद कर दिया जाता है।  किसी तरह  छामा से पैसे लेकर झबरू अपने भाई को जमानत और पटवारी को पैसे  खिलाकर बचा लाता है।  गबरु और झबरु दोनों में भले ही आपस में न बनती हो लेकिन दोनों में एक दूसरे के प्रति उससे कही अधिक प्रेम भी है। दूसरी तरफ प्रधान छामा को डराकर और कानून से बचने का लालच देकर अपनी ओर मिला लेता है। धीरे-धीरे गाँव वाले भी प्रधान की तरफ हो जाते हैं। अब यहां पर होता यह है कि सभी गबरु को मारना चाहते हैं छामा भी गबरु को मारना चाहती हैं, वही मूसी भी गबरु को मारना चाहती है , प्रधान भी गबरु को मारना चाहता है, जगरी भी गबरू को मरना चाहता है। हर कोई यही चाहता है कि गबरु का अंत हो जाए। 

        इस कहानी में एक मौत तो होती है यह मौत किसकी होती है और उसके बाद क्या होने वाला है यह जानने के लिए आपको यह नॉवेल पढ़नी होगी यह उपन्यास आप पहाड़ी बाजार से मंगवा सकते हैं। बहुत ही अच्छा उपन्यास है, गढ़वाली भाषा में है और पूरी कहानी में रोमांच भी मिलेगा, रहस्य भी है छुपा हुआ, इसमें आपसी मतभेद झगड़े भी इसके अंदर आपको मिलेंगे। मतलब यह जो कहानी है एक गांव के इर्द-गिर्द ही घूमती है और पटवारी के चौकी तक पहुंचती है। इतने ही दायरे में यह पूरी कहानी घूम रही है। 

        आपको यह कहानी कैसे लगी? और यदि आपने यह उपन्यास पढ़ लिया है तो आपको कहानी कैसी लगी अपने विचार, प्रतिक्रिया हमें कमेंट द्वारा जरूर बताइएगा। जल्द ही हम अपनी दूसरी पुस्तक का रिव्यु लेकर आएंगे और अभी इससे पहले हमने एक गीत का रिव्यू किया था, जो संगीता धौंडियाल जी का आया था उस गाने का भी इस ब्लॉग में हमने रिव्यू किया है उसे भी आप हमारे ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं और साथ ही उसको हमारे यूट्यूब चैनल पर आप इस गीत का रिव्यू देख भी सकते हैं। 

        पूरा ब्लॉग पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद और भी ब्लॉग हमारे पढ़ने के लिए आप हमारे ब्लॉग को सब्सक्राइब कर लीजिए, और साथ ही हमारे यूट्यूब पर वीडियो देखने के लिए आप हमारे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब कर सकते हैं, और साथ में घंटी वाले बटन को जरूर दबाएं ताकि आपके पास हर आने वाली वीडियो की जानकारी पहुंच जाए 

धन्यवाद 

अनोप सिंह नेगी खुद खुदेड़ 

9716959339










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