माँ
ईश्वर का दूजा रूप है तू,
माँ तेरे जैसा कोई नहीं है,
ठुकरा दूँ आसन देवों का।
छाया हो तेरे आँचल की माँ,
भाग बँधा हो हर जन्म तुझी से।
तेरे हाथों का स्पर्श हो जाये,
तकदीर मेरी मिल जाये मुझी से।
अमर वृक्ष की शाख हूँ मैं,
अमृत रस का मैंने पान किया।
अकिंचन था तेरे लाड बिना माँ,
तूने जगती में लाके उद्धार किया।
वरदहस्त तेरा मेरे शीश रहे नित,
चरण रज में इंद्रासन पा जाऊँ।
सीख तेरी अनमोल धरोहर,
नूतन पुष्पों को सिखला जाऊँ।
नीर न नैनों में आये मेरे कारण,
हर आँचल मुझको माँ दिख जाये।
तन मन मेरा दुग्ध धवल हो,
नाम तेरा उर में अब लिख जाये।
सर्वाधिकार सुरक्षित-नन्दन राणा
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