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Ghazal yakhuli yakhuli rai gya गजल यखुली-यखुली रैग्या

गजल


द्युवा भैर-भैर जौग्या,
भितर खाली अन्ध्यरा रैग्या।
कनी बरखा बरखी आज,
Ghazal  yakhuli yakhuli rai gya गजल यखुली-यखुली रैग्याबादल सभी तिसळा रैग्या।

आँखा ख्वौल्या निस न धरती,
अर न ऐंच अगाश छौ।
यु करी कैन यन जादू,
हम यखुली-यखुली बीजा रैग्या।

ध्वक्का कैन कै नि दीनि,
बिचार सब्वा अच्छा छा।
दुसरू हम मूँ माफी माँगू,
हम यनी सोचदी रैग्या।

लोग भौत स्याँणा छन,
यीं दीन-दुनिया मा,
घौर बिटिन भैर नि ऐंया,
अर बटू बिरड़्दी रैग्या।

हम तुमारा सिखैंया पाठ,
पढ़दी क्य रैंन रात-दिन,
कभी कुछ बोली नि सक्या,
क्वौंणा३ भितरे-भितर रैग्या।

लोगून अपुड़ी मन की ख्वैश,
जिकुड़ी भितर दबैक राखी,
जु नेता अर राजनीतिन दीनीं,
तैई मा अळज्याँ रैग्या।

हम जै भी बटा हिट्या,
तैमा दगड़्या क्वै नि छौ,
तुम "नन्दने" जग्वाळ मा,
अब यखुली-यखुली रैग्या।

©सर्वाधिकार सुरक्षित®-नन्दन राणा

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