मेरी यह रचना समर्पित मेरे उन साथियो को जो परदेशो में दूर है अपने परिवार से खासकर उनको जो अपनी माँ से दूर है।
आशा है मेरी ये रचना आपको पसंद आएगी।
हैरान हूं परेशान हूं,
जो सोचता हूं सब विपरीत ही पाता हूं।
मैं तुझसे तू मुझसे है क्यों दूर,
आज तक समझ नही पाया हूं।
वो सब तो है मेरे पास,
जो मैं पाना चाहता हूं।
जाने फिर भी क्यों तुझसे दूर रहता हूं,
बस यही सोचकर मैं खोया सा रहता हूं।
नजाने कब वो दिन आएगा,
कि मैं तेरे पास आ जाऊ।
गोद मे तेरे सर रखकर,
तुझसे खूब बतलाऊ।
हा तू 'माँ' ही तो है मेरी!
तुझ बिन अब मैं रह नही पाता हूं।
बस कुछ मजबूरियां है मेरी,
जो तुझसे दूर रहने पर मजबूर हो जाता हूं।
मुझे देख देख तू जिया करती थी,
आज तुझे देख मैं जीना चाहता हूं।
अब तेरे पास हमेशा के लिए,
लौट मैं जाना चाहता हूं।
अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
9716959339
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