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मेरी ब्वै का खैरी का आंसू

इस कविता को पढ़कर आपके आँखों के आंसू रुक नहीं पाएंगे इस रचना को पूरी जरुर पढ़े रचनाकार भाई सुनील भट्ट जी की इस कविता में जो दर्द है वो आपको अंदर तक झकझोर देगा एक बार रचना जरुर पढ़े 


  "मेरी ब्वै(माँ) का खैरी का आँसू"
(एक गढवली रचना सभी "माँवों" को  समर्पित)

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मेरी "ब्वै" का खैरी का आँसू छन ई,
म्यरा संभाली का धरयाँ छन ई, अपणी आँख्यूं मा।
अपणी खैरी काटणा कु।

अपणु बाऽलापन बटै ब्वै थै खैरी खांदू द्यखुदू ग्यौं मि,
अर यूँ आँसू थै एकैक कैक संभल्दी ग्यौं मि।

हमरा दुख मिटाणा का बाना खूब घिस्या ब्वै,
गरीबी का पाटों का बीच खूब पिस्या ब्वै,
हमथैं गुड़ा की ठुँगार देकी, अफु फीकी चा पेद्या,
अफु बाड़ी ख्या ब्वैन अर हमथै भात कु गफ्फा देद्या।

ग्वीराऽला कू डाऽल मा बटी, पत्त भुयाँ प्वाड़,
रूणी रयाई सरया रात बैठीक एक कुणा कु छ्वाड़।
वीं खैरी का आँसू छन ई,
म्यरा अपणी आँख्यूं मा संभाली का धरयाँ छन ई।

पटऽला सरीन लुखुंका ब्वैन भारू मुन्ढुमा ल्यान्दी देखी,
गात की ध्वतड़ी पस्यौ मा, खूब कैकी तरपान्द देखी।
खुदेड़ गीत सुणी ब्वै थेै, मैत्यौं भेंटेकी रौंदी देखी,
"बाबा" थै याद कैकी, यखुली-यखुली सिसकांदी देखी।
मुन्डरू मा भी पाणी कु बंण्ठा, नांगा खुट्यूँ ल्याँदू देखी,
मुन्ढुमा झुल्ला बाँदी ब्वैथै पीड़ा मा कणादी देखी।
वी खैरी का आँसू छन ई,
म्यरा अपणी आँख्यू मा संभाली का धरयाँ छन ई।

अपणु माथाकु ढिकणु बी ब्वैन, हमुरू मथि डाऽल द्या,
पुरूणी ध्वतड़ी दुवरू कैकी, सरया रात काटी द्या।
गौड़ी मार बाघन, बुख्ठया थै भी लीग्या,
स्वीणा टुटीन ब्वै का, खूब कैकी फटकरैग्या।
कैन बोली तुम पर देव्ता, कैल छ्वलै द्या,
पुछ्यरा मा भाग ब्वै, वैन भी वी दोष बतै द्या।
साग जतास कु पैसा नि छ्या,
पर पैंछू-उधार कैकु ब्वैन, देव्ता भी पुजै द्या।
वीं खैरी का आँसू छन ई,
म्यरा अपणी आँख्यूं मा धरयाँ छन ई।
मेरी ब्वै का खैरी का आँसू छन ई,
हाँ मेरी ताकत छन ई,

जू मिथै जीणू सिखांदिन,
हालातों दगड़ी लड़नू सिखांदिन।
सै गल्त कू फर्क सिखांदिन,
अर खैरी खाण सिखांदिन।
जब कभी टूटी जांदू शरीर, दिक्क ह्वै जांद
आख्यों  अग्नै अन्ध्यारू छ्या जान्द
मेरी ब्वै का आँसू म्यरा आँख्यू का अग्नै,
खड़ा ह्वै जान्दिन वाढु सी, पहाड़ बणीकी
रोक दिदान म्यरा आँसू
नि ध्वलण दिंदा भैर।।

  
                स्वरचित /**सुनील भट्ट**
                19/08/2016

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