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आऊंगा ओढ़ तिरंगा

भाई सुदेश भट्ट "दगड्या" जी की वीररस भरी कविता जो सरहद पर तैनात सैनिको को समर्पित है।

या आऊंगा ओढ तिरंगा,
या फहरा कर आऊंगा,
दुश्मन का तोड़कर बंकर,
रण जीतकर आऊंगा।

अंतिम डग पग और सांस तक,
दुश्मन से टकराऊंगा,
भारत माँ की जयकारा का,
गीत अंत तक गाऊंगा।

मिटा दुंगा दुश्मन को अपनी,
गोली की बौछारों से,
पाला पड गया दुश्मन का,
भारत के मतवालों से।

एक हाथ मे ध्वज तिरंगा,
दुजे मे मेरी राईफल है,
मिटा दुंगा जड से दुश्मन को,
तिलक माटी का लगाया है।

रणभेदी जयकारा से,
धरती कांपेगी दुश्मन की,
माँ के दूध की शपथ है मुझको,
लाज रखुंगा माटी की।

या आऊंगा ओढ तिरंगा,
या फहरा कर आऊंगा,
दुश्मन का तोड़कर बंकर,
रण जीतकर आऊंगा।

देश की सरहदों पर तैनात सैनिकों को समर्पित कविता

सुदेश भट्ट "दगड्या"

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