चलो वर्षभर में एक बार ही सही,
आपने मुझे याद तो कर लेते हैं।
साल भर से सोए लोग भी,
दो शब्द मेरे लिए बोल लेते हैं।
सदियों से बेसुध पड़ी मैं,
वर्ष भर में एक बार उबासी भर।
लेती हूं हमें हिंदी ही तो हूं,
जो अंग्रेजी की बेड़ियों में बंधी हूं।
अपना सको तो अपना लो मुझे,
वरना बेचारों की गिनती में तो मैं आज भी हूं।
अपने ही मुल्क में बेगानी सी रहती हूं,
हरपल घुटी घुटी सी जी रही हूं।
बस कुछ दशक बाकी है मेरे,
अब पीढ़ी दर पीढ़ी मुझे धकेला जा रहा।
अजनबी को अपना, मुझे अजनबी किया जा रहा,
अब तो बस लगता है अंत मेरा आ रहा।
अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
9716959339
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