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महादेवी वर्मा

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महादेवी वर्मा (२६ मार्च १९०७ — ११ सितंबर १९८७)


महादेवी वर्मा

आँसू का मोल न लूँगी मैं !

यह क्षण क्या ? द्रुत मेरा स्पंदन ;
यह रज क्या ? नव मेरा मृदु तन ;
यह जग क्या ? लघु मेरा दर्पण ;
प्रिय तुम क्या ? चिर मेरे जीवन ;

मेरे सब सब में प्रिय तुम,
किससे व्यापार करूँगी मैं ?
आँसू का मोल न लूँगी मैं !

निर्जल हो जाने दो बादल ;
मधु से रीते सुमनों के दल ;
करुणा बिन जगती का अंचल ;
मधुर व्यथा बिन जीवन के पल ;
मेरे दृग में अक्षय जल,
रहने दो विश्व भरूँगी मैं !
आँसू का मोल न लूँगी मैं !

मिथ्या, प्रिय मेरा अवगुण्ठन
पाप शाप, मेरा भोलापन !
चरम सत्य, यह सुधि का दंशन,
अंतहीन, मेरा करुणा-कण ;

युग युग के बंधन को प्रिय !
पल में हँस 'मुक्ति' करूँगी मैं !
आँसू का मोल न लूँगी मैं !



कुछ याद आया जी हां ये कविता है महान लेखिका व कवियित्री स्वर्गीय श्रीमती महादेवी वर्मा जी की उनका आपका जन्म पर्रुखाबाद उत्तर प्रदेश में 26 मार्च 1907 हुआ  प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्रधानाचार्य व कुलपति के पद पर भी  रही इलाहबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम ए किया १९३६ में नैनीताल से २५ किलोमीटर दूर रामगढ़ कसबे के उमागढ़ नामक गाँव में महादेवी वर्मा ने एक बँगला बनवाया था। जिसका नाम उन्होंने मीरा मंदिर रखा था। जितने दिन वे यहाँ रहीं इस छोटे से गाँव की शिक्षा और विकास के लिए काम करती रहीं। विशेष रूप से महिलाओं की शिक्षा और उनकी आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए उन्होंने बहुत काम किया। आजकल इस बंगले को महादेवी साहित्य संग्रहालय के नाम से जाना जाता है। गौरा और सोना जैसी मार्मिक लेख भी आपने खूब पढ़े होंगे दोस्तों आज ऐसी ही प्रतिभाषाली व्यक्तित्व की पुण्य तिथि है आज हम आपको श्रधांजली अर्पित करते है मेरी पसंदीदा लेखिका के रूप में आपको आदर्श मानता हू जीवन में पहली बार जिस पाठ को ध्यान से पढ़ा था वो था सोना हिरन की कहानी जिसे मैंने एक बार नहीं अनेक बार पढ़ा ऐसी मार्मिकता भरा लेख मन को कितनी ही बार झकझोर देता है 

आज के ही दिन 11 सितम्बर 1987 को यह पुण्य आत्मा परमात्मा में विलीन हो गयी ऐसी पुण्य आत्मा को हम श्रधा सुमन अर्पित करते है 

अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
9716959339

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