बण अर आग मेरा पहाडे डांडी कांठी दिखैंदि छे, कन हरी-भरी आग लगौंदा मनख्यूं यन अन्याय क्यैक करीऽ। हरी-भरी डाळी छे ठंडु-ठंडु पाणी छो बण फुक्येलोत पाणी सूखुलू। क्या मिलि तौ बण जगैक पाणी हव…
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