आइए,जड़ों से शाख तक पहुंचें..
उत्तराखंड आज से नहीं पौराणिक काल से ऋषि- मुनियों, तपस्वियों, साधकों की शरण स्थली रहा।महर्षि व्यास से लेकर कालांतर में आदिगुरु शंकराचार्य,स्वामी विवेकानंद , महात्मा गांधी , गुरु रविंद्र नाथ टैगोर, गुरु नानक,पंडित गोविंद बल्लभ पंत, नृत्य सम्राट उदय शंकर ,सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा आदि ने इस क्षेत्र की यात्राएं की।महान रचनाकार तुलसीदास स्वयं 16वीं शताब्दी में बद्रीनाथ की यात्रा पर गए।अब 21शताब्दी में तो अनगिनत प्रबुद्ध और सामान्य जन की एक लंबी सूची है जिन्होंने उत्तराखंड की ओर धार्मिक, नैसर्गिक व सामान्य पर्यटन के लिए अपना रुख किया।
19वीं शताब्दी में जब धार्मिक पर्यटन अपने चरम पर था तब इस क्षेत्र में आने वाले लोग काली कमली,धर्मार्थ अन्नधन जैसी धर्मशालाओं,हरिद्वार- ऋषिकेश के आश्रमों, मठों या होटल- रेस्त्रां की ओर अपना रुख करते थे । धार्मिक के साथ नैसर्गिक पर्यटन का उत्तराखंड में विकास होने से कुमाऊं मंडल विकास निगम,गढ़वाल मंडल विकास निगम के अतिथि गृहों के विस्तार के साथ ही बड़े होटल भी उत्तराखंड में फिर बनने लगे।
अभी लगभग 15- 20 वषों के भीतर उत्तराखंड में दूरदराज क्षेत्रों में रिसोर्ट बनाने के कल्चर का उदय हुआ है। प्रकृति के सानिध्य में कुछ लोग इनमें परिवार सहित रहना भी पसंद हैं ।यह अच्छे तरीके से निर्मित किए हुए सुविधायुक्त भी हैं। किन्तु जब धन कमाने की होड़ में वैध/ अवैध तरीकों से यह यहां बनने लगे और रिसोर्ट का कल्चर उत्तराखंड में पनपा तब से एक नया ट्रैंड पर्यटन का उभरकर सामने आया कि दो चार दिनों के लिए उन रिसोर्ट में पहुंचो , मद्यपान करो,कचरा फैलाओ और काले/सफेद धन के दो - तीन लाख रूपए उड़ा कर आ जाओ।जहां एक दिन रहने का किराया कम से कम 3 से 5 हजार रूपये प्रतिदिन हो वहां सामान्य पर्यटक ,सौंदर्य प्रेमी तो कम ही जा पायेगा।इन दूर- दराज स्थानों में इन रिसोर्ट में क्या गतिविधियां चल रही हैं किसी को कुछ पता नहीं होता।हर कोई गलत नहीं है फिर भी हर किसी का ईमान- धर्म अलग - अलग होता है। कई बार यहां तक पहुंचने वालों के लिए सुरा तक तो आम बात होती है किन्तु जब सुंदरी भी यहीं ढूढने लगते हैं तो अधर्म हो जाता है।
उसी की भेंट 19वर्षीय अंकिता नाम की उत्तराखंड की एक बेटी भी चढ़ गई । अपनी नौकरी ऋषिकेश के निकट एक रिसोर्ट में करते हुए मालिक द्वारा अश्लील हरकतों के चलते, व उस रिसोर्ट में आने वालों का, उनके कहे अनुसार सत्कार करने हेतु प्रेरित करने के लिए जब वह राजी नहीं हुई तब मारपीट कर नहर में धक्का देकर उसकी मृत्यु कर दी गई।हमारे भारत भूमि में खिलने वाली कली को नृशंसकों ने पहले ही खत्म कर डाला,बहुत बड़ा दुर्भाग्य.…..।
अब उत्तराखंड की कोई बेटी आगे इन रिसोर्टों की भेंट न चढ़े इसके लिए यह निम्नलिखित कदम उठाए जाने आवश्यक लगते हैं:-
(1). सर्वप्रथम रिसोर्टों की पूरी छानबीन हो,उनका एक रिकॉर्ड निर्धारित हो। जिसमें प्रतिदिन कौन व्यक्ति यहां पहुंचा,उसके आधार कार्ड व पूरा पता प्रतिदिन की सूची में संलग्न हो ,जैसा होटलों/मुख्य स्थलों पर होता आया है।
(2)पुलिस व्यवस्था को महिलाओं में मामले में त्वरित कार्रवाई करने के आदेश होने चाहिए।वैसे भी जीरो FIR का पूरे भारत में आदेश लागू है। यदि आवश्यक नहीं हो तो राजस्व पुलिस की व्यवस्था समाप्त होनी चाहिए, राज्य पुलिस शीघ्र संज्ञान ले।
(3) एकांत स्थलों पर बने रिसोर्ट में एकमात्र महिला स्टाफ न रखा जाए तो बेहतर है। यदि हो तो उनकी संख्या अधिक हो। उसकी पूरी सुरक्षा की जिम्मेदारी रिसोर्ट के प्रबंधक की होनी चाहिए।
(4)इन रिजोर्टों के सीसी कैमरा बिल्कुल सही स्थिति में हों।अचानक खराब होने ,शीघ्र ठीक न होने की स्थिति में आगंतुकों के फोटो मोबाइल फोन से लेकर सुरक्षित रखे जाएं,चाहे वह ग्रुप में ही क्यों न हो।अन्यथा सीसी कैमरा खराब होने का बहाना भी उनका मुख्य विषय होता है।
(5)जो भी बेटियां यहां और कहीं भी जॉब करती हैं उन्हें अपनी परेशानियों को दबाना नहीं चाहिए।खुलकर अपने माता - पिता,भाई बहन,मित्र,स्टाफ जिसे भी वह उचित मानती हैं,उन्हें अवश्य बताना चाहिए।
(6)माता - पिता को भी यह ज्ञात होना चाहिए कि उनकी बेटियां जहां जॉब कर रही हैं ,उसका परिवेश कैसा है।समय- समय पर बेटियों को अच्छे- बुरे के विषय में समझाना और उनका मार्गदर्शन करते रहना चाहिए।
(7)ऐसे जघन्य अपराध करने वालों को ऐसी सख़्त सजा मिलनी चाहिए जो आगे के लिए एक उदाहरण बन सके, जिससे ऐसा कृत्य करने वाला व्यक्ति पहले सौ बार सोचे। पार्टी/सत्ता से ऊपर उठकर निष्पक्षता से इस पर कार्य और कार्यवाही होनी चाहिए।
बेटी उत्तराखंड की हो या भारत की उसके साथ ऐसी घटनाएं कभी नहीं होनी चाहिए। बेटियों से तो यह सुंदर संसार है।उन्हें भी खुले आकाश में उड़ने का पूरा अवसर मिले।
कृपया इसे एक दस्तूर निभाने का लेख न समझते हुए राज्य सरकार व पुलिस विभाग द्वारा रिसोर्टों /बड़े होटलों पर पूरी नज़र रखी जानी चाहिए।जो अवैध हैं उन्हें ध्वस्त किया जाना चाहिए और जो वैध हैं उनके लिए पूरे नियम- कानून लागू होने चाहिए। बीच में उनका निरीक्षण कार्य समय- समय पर चलता रहे।
अंकिता तो चली गई ।अब आगे इस ढीले रवैए के कारण कोई और अंकिता न बनने पाए,इस दिशा में आप भी सोचिए, मैंने भी यही कुछ सोचा और आप तक पहुंचा दिया।
अब आप क्या सोचते हैं और कहना चाहते हैं। कलम का रुख आपकी तरफ है.....!
--- हेमा उनियाल
(भावपूर्ण श्रद्धांजलि सहित)
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