गौंकी सौंधी माटी
मनमा लगीं ठसाक तैरि बिंगी नि पायी।।
परदैश मा समै काट्णों छौं,
उलझन लै मनमा रौंणूं छौं।
मनमा लगीं ठसाक---------
ठंडाई तैं बानि चीज
छन,
ऐसो आराम भी बिंडि छन।
गौळै तीश तैं भलि करि मैं बुझे नि
पायी।
मनमा लगीं ठसाक-------
भाग्णं घूमंण बतेरा पार्क छन,
शरील मसाज बिंडि चीज छन।
ऊकाळ ऊंधार जनि बाटा दैखि नि पायी।
मनमा लगीं ठसाक--------
चौंसा फांणु छक कर बणांई,
कड़ि पकौड़ा बणैं खूब रळाई।
कौंणि छसैंड़ू सपौड़ी स्वाद चाखि नि
पायी।
मनमा लगीं ठसाक---------
गमळौं माटू छकी कर डाळी,
फूल पाती तौंमा
खूब फूळी।
दैखदि रौं पर तौंमा गौंकी खुशबू
नि पायी।
मनमा लगीं ठसाक---------
गर्म ठंडी हवा तैं जुगाड छन,
कखि कूलर पंखा ऐसी छन।
डाळी मूड़ी बैठी बथौं फ्फराट नि दैखि
पायी।
मनमा लगीं ठसाक---------
सुनील सिंधवाल"रोशन"(स्वरचित)
काव्य संग्रह "अपणिं जनिं लग्णिं"
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