मुसाफिर हूँ
मुसाफिर हूँ, वर्षों सेनिरन्तर प्रयास में हूँ
इंसानों की भीड़ मे मै
इंसानियत की,तलाश मे हूँ ¶
यूँ तो भीड़ बहुत है,इंसानों की
पर ऐसे इंसान की,फ़िराक में हूँ
करे प्यार जो,बिना स्वार्थ वश
उस महान शख्स की,तलाश में हूँ ¶
छला है दुनिया ने,अपना कहकर
अब अपनों से भी,डर लगे
ढूंढे आँखें उस एक शख्स को
जिसमे मन ये,जी भर लगे ¶
अनुभव से तो बस यही सीखा है
दुनिया ने झूठ को भी वाह कहा
किया प्यार जिन्हें,खुद से जादा
उन्होंने ही हमे,बेवफा कहा ¶
दिखावे की दुनिए ये,जो दिखे वो बिके
दिखावा आया, न बिकना आया
इसलिए निकले,खजाने के खोटे शिके ¶
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पंक्तियां ~ सुरेन्द्र सेमवाल
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