लेखी-लेखी की करू क्या?
पहाड़ तब भी बर्बाद हूणु चा,
लिखण वलु की कमी नि पहाड़ मा।
गायी-गायी की करू क्या?
पहाड़ तब भी धै लगाणु चा,
गाण वलु की कमी नीच पहाड़ मा।
समझै-समझै की करू क्या?
पहाड़ तब भी नि बुथेणु चा,
बुथ्याण वलु की कमी नि पहाड़ मा।
सोची-सोची करू क्या?
पहाड़ तब भी हरचुणू चा,
सोचण वलु की कमी नि पहाड़ मा।
देखी-देखी करू क्या?
पहाड़ तब भी रुणु चा,
देखण वलु की कमी नि पहाड़ मा।
समाली-समाली करू क्या?
पहाड़ तब भी छुटणु चा,
समलण वलु की कमी नि पहाड़ मा।
सै-सै की करू क्या?
पहाड़ तब भी दुखणु चा,
सैण वलु की कमी नि पहाड़ मा।
हैंसी-हैंसी करू क्या?
पहाड़ तब भी सुबकुणु चा,
हैंसण वलु की कमी नि पहाड़ मा।
रोपी-रोपी की करू क्या?
पहाड़ तब भी उजड़णु चा,
रोपण वलु की कमी नि पहाड़ मा।
हरचे-हरचे की करू क्या?
पहाड़ तब भी लुप्तेणु चा,
हरचाण वलु की कमी नि पहाड़ मा।
अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
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