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Kainchi Dham (कैंची धाम)



पृथ्वी पर स्वर्ग का दूसरा नाम है कैंची धाम


कैंची धाम
   हिमालय की गोद में बसा उत्तराखंड प्रकृति की अमूल्य अलौकिक धरोहर है। यहां की पावन रमणीक वादियों में पहुचते ही सांसारिक मायाजाल में भटके मानव की समस्त व्याधिया यूं शांत हो जाती है, जैसे की लौ पाते ही तिनका भस्म हो जाता है। यहां के ऐतिहासिक धरोहर रुपी रमणीय गुफाए मनभावन मंदिर यहां आने वाले हर आगन्तुक को अपनी ओर आकर्षित करने में पूर्णतया सक्षम है। ऋषि-मुनियों की आराधना व तपस्थली के रूप में प्रसिद्ध इस पावन भूमि के पग-पग पर देवालयों की भरमार है। सुंदर निर्झर झरने कल-कल धुन में नृत्य करती नदिया अनायास ही पर्यटकों व श्रद्धालुओ को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेते है। देवभूमि उत्तराखंड की अलौकिक वादियों में से एक दिव्य रमणीक लुभावना स्थल है "कैंची धाम"। कैंची धाम जिसे नीम किरौली धाम भी कहा जाता है, उत्तराखंड का एक ऐसा तीर्थस्थल है, जहां वर्षभर श्रद्धालुओ का तांता लगा रहता है। अपार संख्या में भक्तजन व श्रद्धालु यहां पहुचकर अराधना व श्रद्धा पुष्प श्री नीम किरौली के चरणों में अर्पित करते है। हर वर्ष १५ जून को यहां एक विशाल मेले व भंडारे का आयोजन होता है। भक्तजन यहां पधारकर अपनी श्रद्धा व आस्था को व्यक्त करते है। कहते है कि यहां पर श्रद्धा एवं विनयपूर्वक की गयी पूजा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती है। यहां पर मांगी गयी मनौती पूर्णतया फलदायी कही गयी है।






     जनपद नैनीताल की सौन्दर्यशाली वादियों में स्थित कैंची धाम का मंदिर क मंदिर समस्त उत्तराखंड सहित देश-विदेश के तमाम श्रद्धालुओ की आस्थाव का केंद्र है। भावली के समीप स्थित इस मंदिर की स्थापना को लेकर कई रोचक कथाए जनमानस में खासी प्रसिद्ध है। नीम किरौली महाराज की अनुपम कृपा से ही इस स्थान पर मंदिर की स्थापना की गई। कहते है कि १९६२ के आस-पास श्री महाराज जी ने यहां की भूमि पर कदम रखा तथा उनके चरणों की आभा पाकर यह भूमि धन्य हुई। जब वे सन् १९६२ के लगभग यहां पहुचे तो उन्होंने अनेक चमत्कारिक लीलाए रचकर जनमानस को हतप्रभ कर दिया। एक चमत्कारिक कथा के अनुसार  माता सिद्धि व तुलाराम शाह के साथ बाबा नीम किरौली महाराज किसी वाहन से जनपद अल्मोड़ा के रानीखेत नामक स्थान से नैनीताल को आ रहे थे तो अचानक वे कैंची धाम के पास उतर गए। इस बीच उन्होंने तुलाराम जी को बताया कि श्यामलाल अच्छा आदमी था, उन्हें यह बात अच्छी नहीं लगी, क्योंकि श्यामलाल जी उनके समधी थे। भाषा में 'था' शब्द के उपयोग से वे बेरुखे हो गए। खाई, किसी तरह मन को काबू में रखकर वे अपने गंतव्य स्थल को चल दिए। बाद में उन्हें जानकारी मिली कि उनके समधी का हृदय गति रुकने से देहांत हो गया। कितना अलौकिक दिव्य चमत्कार था बाबा नीम किरौली महाराज का कि उन्होंने दूर घटित घटना को बैठे-बैठे जान लिया इस तरह की अनेक चमत्कारिक घटनाएं बाबा नीम किरौली महाराज जी से जुड़ी हुई है। इसी तरह १५ जून १९९१ को घटी एक चमत्कारिक घटना के अनुसार कैंची धाम में आयोजित भक्तजनों की विशाल भीड़ में बाबा ने बैठे-बैठे इसी तरह निदान करवाया कि जिसे यातायात पुलिसकर्मी घंटो से नहीं करवा पाए। थक-हार कर उन्होंने बाबा जी की शरण ली। आख़िरकार उनकी समस्याओ का निदान हुआ। यह घटना आज भी खास चर्चाओ में रहती है। इसके आलावा यहाँ आयोजित भंडारे में 'घी' की कमी पड़ गई थी। बाबा जी के आदेश पर नीचे बहती नदी से कनस्तर में जल भरकर लाया गया। उसे प्रसाद बनाने हेतु जब उपयोग में लाया गया तो, वह जल घी में परिवर्तित हो गया। इस चमत्कार से आस्थावान भक्तजन नतमस्तक हो उठे। एक अन्य चमत्कार के अनुसार बाबा नीम किरौली महाराज जी ने गर्मी की तपती धूप में एक भक्त को बादल की छतरी बनवाकर उसे उसकी मंजिल तक पहुचवाया। इस तरह एक नहीं अनेक किवंदतिया जुड़ी हुई है बाबा नीम किरौली महाराज से।

अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)

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