कढ़ी पत्ता गुंदेला Murraya koenigi
कढ़ी पत्ता एक ऐसी वनस्पति जिसके बारे में लगभग सभी लोग जानते होंगे, ये आपको अधिकतर बाजार में मिलने वाली नमकीन में मिल जाएगा। किसी भी सब्ज़ी में डाल दो सब्ज़ी का स्वाद ही बदल देता है। इसे Murraya koenigii, बर्गेरा कोएनिजी(Bergera koenigii), चल्कास कोएनिजी (Chalcas koenigii) आदि नामो से भी जाना जाता है। यह Rutaceae कुल का पौधा है।
इसका स्वाद मैने पहली बार भोपाल में चखा था मैं जबलपुर आर्मी कैण्ट में एलडीसी का एग्जाम देने गया था, अचानक ही वहां से मौसी के घर जाने का मन हुआ जो कि भोपाल में रहती है। मैंने घर फोन किया और पहुँच गया मौसी के घर अरेरा कॉलोनी हबीबगंज रेलवे स्टेशन के नजदीक ही है। अगले दिन मैं सुबह वहां प्रियदर्शनी मार्किट थी वहां पहुँचा मैंने पोहा नाम पहली बार सुना तो मन हुआ स्वाद लिया जाए मैंने एक प्लेट पोहा लिया और बहुत ही ध्यानपूर्वक खाने लगा स्वाद को समझते हुए सबकुछ इसमे समझ आ रहा था लेकिन एक स्वाद समझ नही आया तो मैंने दुकान वाले से पूछ ही लिया कि ये हरे से पत्ते क्या है? तो जवाब मिला कढ़ी पत्ता अब मेरे लिए उस वक़्त ये नाम भी नया था। मुझे लगा कढ़ी में डाला जाने वाला कुछ होगा जो इसमे डाला है। मैं घूमघाम के वापिस घर पहुँचा तो मौसी से पूछा ये पोहा क्या है और उसमें कढ़ी पत्ता डाला जाता है वो कैसे होता है मतलब पेड़ है या क्या? वहां तो लगभग सभी जगह नाश्ता लगभग पोहा का ही होता है, मौसी ने पोहा बनाना शुरू किया और उसमें जब वो समान डालने लगी तो तब पता चला ये तो किसी पेड़ के पत्ते है कजो टहनी समेत घर मे थे।
फिर जब मैं गांव गया तो कही जगह मैंने देखा कढ़ी पत्ता के बड़े बड़े पेड़ अपनी छाव में छोटे छोटे पौधों को पनपा रहे थे, जोकि अपने आप हो जाते है। ये सभी जगह तो नही देखे मैने लेकिन पहाड़ो में कुछ जगह पर देखे।
मैं अपने ससुराल गया वहा भी मैंने रास्ते मे बहुत से कढ़ी पत्ता के पेड़ देखे जब मैंने जानने का प्रयास किया तो पता चला वहां इन्हें गुंदेला नाम से जाना जाता है। कढ़ी पत्ता/ गुंदेला हमारे हाजमा के लिए बहुत ही उचित औषधीय वनस्पति है। काला नीम के नाम से भी इसे जाना जाता है। दक्षिण भारत मे तो इसका खूब प्रयोग होता है खाने में। कढ़ी पत्ता खाने का स्वाद बढ़ाने के साथ साथ हमारे शरीर को स्वस्थ बनाए रखता है। अब जानते है कढ़ी पत्ता में मौजूद औषधीय गुणों बारे में
सबसे पहले आपको बता दू कि इसका उपयोग आयुर्वेद में काफी समय से होता आया है। मधुमेह, लिवर की बीमारी, पेट की समस्याओं, दस्त, पाचन शक्ति बढ़ाने, लंबे घने और काले बालो के लिए, ब्लड शुगर, बदहजमी, वजन घटाने के लिए उपयोगी औषधि के रूप में इसका उपयोग किया जाता है। कढ़ी पत्ता आंखों की रोशनी बढ़ाने, मोतियाबिंद के उपचार में सहायक होता है, किडनी रोग के उपचार में भी काम आता है। काले घने लम्बे बालो के लिए कढ़ी पत्ता सबसे बेहतर माना जाता है। आयुर्वेद ग्रुप की गीता रमेश की किताब "द आयुर्वेद कुकबुक" में उन्होंने लिखा है कि यदि प्रतिदिन कढ़ी पत्ता का सेवन किया जाए तो इससे कोलेस्ट्रॉल कम हो जाता है और वजन भी घटता है।
मधुमेह के रोगी यदि 3 महीने तक लगातार सुबह कढ़ी पत्ता का सेवन करते है तो मधुमेह में आराम मिलता है। कढ़ी पत्ता की जड़े किडनी रोगियों के लिए लाभदायक पाया गया है।
कढ़ी पत्ता एन्टीऑक्सीडेंट, एन्टीमाइक्रोबियल, एन्टीडायबिटिक, एन्टीबैटीरियल, एन्टी इंफ्लेमेटरी औषधीय गुण उपलब्ध होते है। इसमें आयरन, कैल्शियम, फास्फोरस बिटामिन बी-2, बी-6 तथा बी-9, विटामिन C भरपूर मात्रा में उपलब्ध होते है। एक शोध के मुताबिक प्रति सौ ग्राम कढ़ी पत्ते में 6.1 प्रतिशत प्रोटीन, 66.3 प्रतिशत नमी, एक प्रतिशत वसा, 6.4 प्रतिशत फाइबर और 4.2 प्रतिशत मिनरल 16 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, पाया जाता है। इसमें पाया जाता है।
पौधे उगाने के लिए ताज़े बीजों को बोना चाहिए, सूखे या मुरझाये फलों में अंकुर-क्षमता नहीं होती है। फल को गूदे समेत या गूदा निकालकर गमले के मिश्रण में गाड़ दीजिये और उसे गीला नहीं बल्कि सिर्फ़ नम रखना होता है।
यू तो दोस्तो कढ़ी पत्ता भी अन्य जंगली वनस्पति की तरह जंगली पौधा ही है किंतु देश के बहुत से क्षेत्रो में इसे व्यावसायिक उपयोग में भी लाया जाता। यदि अन्य प्रदेशों में भी इसका व्यावसायिक उपयोग किया जाए तो रोजगार की संभावनाएं बढ़ सकती है।
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