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Jaati. जाति

जाति......
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जात न पूछो साधू की औकात न पूछो माधो की........

अर्थात जो संसार के लिए खुद को भी प्रभु सेवा में समर्पित कर चुका है उस की क्या जाति क्या धर्म,,और जो समस्त प्राणियों का पालन करता है उस की क्या औकात पूछनी है।
आज जाति धर्म के नाम पर समाज में अनेक कुरीतियों का जन्म हो चुका है। आर्यव्रत का जाति धर्म के नाम पे 8 बार बंटवारा हुआ है। अफगानिस्तान, चीन,श्रीलंका, नेपाल,भूटान,बलूचिस्तान, बंगलादेश,पाकिस्तान ये सफर करीब 6 सौ साल का है पर एशिया महाद्वीप के सब से बड़ा साम्राज्य इतना बड़ा था मोरिसस से लेकर कन्या कुमारी तक जितने भी 13 ज्योतिर्लिंग फैले है उन का नाभिकीय केंद्र श्री महाकालेश्वर उज्जैन है जो बिलुप्त शिप्रा नदी के किनारे है 12 ज्योतिर्लिंग भारत में व एक भारत से बाहर मोरिसस में होना यही दरसाता है कि मोरिसस किसी जमाने में भारत का अभिन आंग था।
देश में व समूचे दुनियां में जितने भी खण्डन हो रहे है वो जाती धर्म के वर्चस्ववादी के कारण हो रहे है सभी अपने धर्म को अपनी मूल जाति को महान घोषित करने पर लगे है पर वास्तविकता से सभी अनजान है अनभिज्ञ है। या जिन को पता भी है उन को कोई पूछता नही या वो अघोर निंद्रा में अपनी दुनियां में खोए है। ऐसे लोग या तो जंगलों में बिचरण कर रहे है या अलौकिक दुनियां में लीन है।
किसी की जाति पूछना आसान है पर खुद की वास्तविक जाती किसी को पता नही है आज समाज में ऐसे भी लोग है जिन को अपना गौत्र ही नही पता या वो ये भी नही जानते गौत्र कितने होते है व क्यों गौत्र होते है उस की वास्तविक वजह क्या है।
8 लाख साल का कलयुग चल रहा है जिस के 4 लाख 73 हजार साल गुजर चुके है। हर प्राणी को अपना जाति धर्म व गौत्र जानने की प्रबल इच्छा थी व उस की रक्षा के लिए अनेकों लड़ाई भी लड़ी गई। अब 12 लाख साल का द्वापर युग भी गुजार गया है जिस में बताया गया था कि श्रीकृष्ण यध्वंशी थे पर कभी भी किसी पुराण में किसी वेद में किसी काब्य में व ग्रंथ में उन्हों ने या किसी लेखक ने उन को श्रीकृष्ण यादव नही सम्बोधित किया इस का मतलब है वो भी नही चाहते थे कि कोई उन को उनते वास्तविक जाति धर्म से जाने सिर्फ मानवता ही उन का धर्म हो।

बात त्रेता युग की जिस युग का युगान्त 12 लाख साल का था जय, बिजय, सुम्भ,निशुम्भ से लेकर रावण दुर्वासा जनक हनुमान राम जी लव कुश ने जन्म लिया पर किसी की भी जाति आज तक पता नही कि रावण था तो ब्रह्म समाज का पर वास्तविक गौत्र क्या था उन का। राम सूर्य वंश के थे पर कभी लिखा नही कि उन जाति क्या थी। उस युग में जाति नही कर्म प्रधान थे धर्म नही गुण प्रधान थे। फिर आज क्यों ऐसा हो गया कि जाति सरवप्रि है। धरती पर मात्र इस कलयुग में दो लड़ाई लड़ी गई पहला ज्यादा खाने के लिए दूसरा अपनी जाति धर्म को बचाने के लिए। पर क्या करें कौन किस को समझायेगा कि आखिर खाना तो कोई भी प्राणी उतना ही खायेगा जितना पेट में जाएगा व धर्म अगर किसी को मार काट के बचाना है तो आप का धर्म हैवानियत है यह तय हुआ।

धरती पर दो ही जाति हुई है पहला नर व दूसरा मादा नर से नारायण का जन्म हुआ जिस के जैसे काम वैसी उपाधि मादा से मात्रशक्ति का उद्द्गम हुआ कोई आसमान से नही उतरा है सब को सत्कर्मों के हिसाब से आदर सम्मान तृष्णा मिली है। जिस ने जैसी फसल बोई वैसी काटी है।
आज अनेकों जाति अपने वर्चस्व की लड़ाई बिना अंजाम समझे व बिना दिशा के लड़ रहे है पर 12 हजार साल में 1329 बोली भाषा व 580 जाति पूर्ण रूप से खत्म हो चुके है कुछ और भी हो जाये तो क्या दिक्कतें है इन्सान नही खत्म होने चाहिए। दुनियां में सभी जितनी भी भाषा बोली जाती है उन की 23% मात्र जननी संस्कृत भाषा है समूचे एशिया महाद्वीप में तो सब भाषा जी जननी संस्कृत ही है पर वो भी सिर्फ पूजा पाठ तक सीमित हो गई है किस को फर्क पड़ता है,,? कुछ हाल देवनागरी भाषा का भी कमोवेश यही है। हिन्दी का हिंग्लिश हो गया है बृज भाषा का लुप्त होने भी भयानक है अवधी आज राजनीति के भेंट चढ़ गया है। भारतीय सम्बिधान दुनियां का अकेला लोकतन्त्र सम्बिधान है जिस पर हम को फक्र है। पर जब उस सम्बिधान का निर्माण करने का गठन हुआ तो 7 लोग निर्मात्री सदस्य थे अचानक 9 महीने बाद बात जाति धर्म पर अटक गई और बाकी के 6 सदस्य किसी निजी व स्वास्थ्य सम्बन्धी वजह से कोर कमेटी से हट गए। जिस की वजह से श्री भीमराव अम्बेडकर जी ने पूरे 2 साल ग्यारह महीने 18 दिन में हर जाति धर्म के सहूलियत को मध्यनजर रखते हुए सम्बिधान बनाया हालांकि उस पर आज उंगलियां उठ रही है पर सवाल वही है कि अगर आप ऐसी वर्किंग कमेटी से हट जाओगे तो फिर उंगलिया नही उठाना।

जाति हमारे उत्तराखण्ड में इतनी मुख्य मुद्दे में नही रही जितनी कि अन्य 28 प्रदेशों में है खासकर उत्तरप्रदेश, झारखंड, पाटलिपुत्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, तेलंगाना, यहां जाति धर्म का बोलबाला कुछ ज्यादा है उस की वजह रही है राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियां व उछले राजनीतिज्ञ जिन्हों ने समाज को दो भागों में विभाजित किया है ऊंच व नींच फिर भोलीभाली जनता का भरपूर फायदा उठाया गया है।
दक्षिण भारत में LTT उत्थान हो या पूर्व में बोडोलैंड,खपलांग सभी जाति धर्म व राजनीति से प्रेरित है 1991 की घटना को कौन भूल सकता है प्रथम बार देश में कोई युवा प्रधानमंत्री सत्ता में आसीन हुआ नई उम्मीद नई सोच के साथ मगर तमिल बिद्रोह की वजह से बम से उड़ा दिया गया उस बम धमाके के वजह से हजारों तमिल पहले भी व बाद में भी मारे गए।तमिल आज भी देश के खिलाप है व उत्तर भारतीयों को वो अपने देश का नही मानते है। वही हाल नक्सली गढ़ छत्तीसगढ़, उड़ीसा बिहार में भी है सब गुट जातिगत प्रेरित है व भटके हुए लोग है। अशिक्षतों का फायदा चन्द शिक्षित लोग उठा रहे है।
जातिगत बातों की वजह से आज दुनियां के सब से धनी राज्य पाटलीपुत्र बिहार के हाल कुहाल है जिस धरती पर नालन्दा यूनिवर्सिटी है जिस का आपने आप में भब्य इतिहास है उस धरती पर आज युवा पढ़ाई के लिए इधरउधर भाग रहा है। वही हाल उत्तरप्रदेश का भी रहा है ब्रिटिश राज में कला साहित्य का क्षेत्र था राम कृष्ण काशिबिस्वनाथ की धरती पर आज जाती धर्म ने उस का क्षेत्र ही समेट दिया है।

आज समाज में सब से निम्न तबके पर जो लोग खड़े है उन को चमार कहा जाता है जब कि वो छोटी मानसिक्ता व अज्ञानता की उपज है जब कि महाऋषि चमार के वंशक है चमार समाज के लोग महर्षि चमार खुद प्रकाण्ड बिद्वान थे खुद भारद्वाज गौत्र के थे पर समाज के निचले तबके में जीवन ब्यतीत करने वाले लोगों के खातिर वो आगे आये उन्हों ने जाति के आधार पर नही आर्थिक इस्थिति के आधार पर लोगों की सहायता किया व अलग समाज बनाया जिस को आज हम चमार समाज समझते है
मेरा धर्म महान है ये गर्व की बात है पर सिर्फ मेरा ही धर्म महान है ये शर्म की बात है,,,ठीक जिस तरह है,,कि आप महान हो आप के लिए सम्मान की बात है और सिर्फ आप ही महान हो ये घमण्ड की बात है।
ऋषि बाल्मीकि जी ने जिस तरह से बाल्मीकि रामायण की रचना की थी उस तरह से वो आज के बाल्मीकि समाज की रचना भी कर सकते थे पर नही उनको पता था सायद की लोग बाल्मीकि समाज के नाम पर क्या करने वाले है। आज किसी दलित या पिछड़े के घर में खाना खाना व  रात गुजारना राजनीति परम्परा होगी पर उसी गरीब को समाज में सम्मान दिलाना आत्मसमान के खिलाप है। हर नेता भिनेता सामाजिक कार्यजरता चुनावी मौसम में इस वोट बैंक रूपी भवसागर में गोता खाते हुए दिख जाता है और चुनाव के ततपश्चात ये दलित लोग गन्दगी में गोता खाते रहते है। न कोई इन का सामाजिक विकास करता है न मानसिक विकास करता है। वजह ये है कि सिर्फ ये लोग फिगर है राजनेताओं के लिए आज हिंदुस्तान में 26 लाख ब्राह्मण है ये भी एक फिगर है 23 लाख दलित ये भी एक फिगर है 25 लाख मुस्लिम ये भी फिगर है इस तरीके से समाज को सोहलियत के लिए बांटा गया है। कुछ मत करो एक ठाकुर या पण्डित को गाली देदो पूरे बिरादरी को लगेगा मुझे गाली दिया व दंगे सुरु हो जाएंगे फिर उस का राजनीतिक फायदा उठाया जाएगा।

महान दार्शनिकों का कभी कोई धर्म नही होता है खजुराहो का शिल्प कला हो या अंकोरवाट का मन्दिर जगन्नाथपुरी हो या केदारनाथ ज्योतिर्लिंग यह बताने के लिए काफी है कि मन्दिर किसी का भी हो शिल्पकार समाज नही तो मन्दिर भी नही है। औजी समाज नही तो वाद्ययंत्र भी नही। कुर्मी बढ़ाई नही तो सफाई व खेती के काम बिल्कुल ठप। अगर आप के हाथ में इस वक्त कोई भी कलाकृति है या आप के घर को जिस कलाकार ने बनाया है वो शिल्पकार ही था जिस को आज हम निम्न तबके के अछूत समझते है जब कि उसी ने हमारा घर बनाया है और अब उस का घर में प्रवेश वर्जित है। क्यों कि हम ने अब पूजा कर लिया,,नही जी सिर्फ इस लिए क्यों कि अब हमारा मतलब निकल गया है इस लिए।
उत्तराखण्ड में जाति धर्म सिर्फ हल्के से खानपान तक सीमित है पर वो भी अब खत्म होने के कगार पर है जाति के हिसाब से हम बात करें तो चोंकाने वाले आंकड़े है आज कोई भी बोलेगा कि क्या यह सत्य है।

हम रावत है उत्तराखण्ड के ठाकुर रावत भारद्वाज गौत्र के मगर रावत कानपुर, फरुखाबाद, बरेली,गोंडा, लखनऊ,अलाहाबाद में निम्न जाति के होते है कुर्मी व बधाई में रावत होते है। अब कोन झूटा कोन सच्चा जब कि बीकानेर, बाड़मेर, श्री गंगा नगर, उदयपुर में रावत पण्डित होते है।
अब रावत जाती में उनियाल उप जाति की बात है जो उनियाल लोग खुद को पण्डित बताते है कुछ अपने को ठाकुर भी बताते है वो सब उत्तराखण्ड में ही है। सहरावत जाट भी है तो सहरावत ठाकुर भी है कही जाति के लोग खुद को शर्मा लिखते है पर उन लोगों ने आपनी असली जाती छिपा दी उस की वजह ये है कि शर्मा जाती बहुत प्रचलित है जम्मू से लेकर कन्याकुमारी तक शर्मा जाती सब से ज्यादा है पण्डितों में। इस लिए आजकल सब शर्मा बन रहे है। जैसे वैदिक,बेदी,दुवेदी,त्रिवेदी,चतुर्वेदी यह भी सोचनीय बिषय है कि आखिर उत्त्पत्ति का सूत्र क्या है। हम किसी जाति धर्म को गलत नही बता रहे है न खुद की जाति को महान पर दुनियां को जाती व धर्म के फालतू के झमेले से निकालने की सोच रखते है सब के सामने आज 56 देश मुस्लिमों के है उस की वजह वर्चस्व की लड़ाई है खुद की जाति व समाज को अनायास ही बढ़ाना जाति खत्म होने के भरह्म में रहना जनसंख्या विस्फोट का कारण है। जिस जाति को अपने ख़ात्मे कर डर रहा वही जल्दी खत्म हुआ है इतिहास उठा के देख लो सम्राट अशोक से लेकर आज 2017 तक कोई भी अपनी जाति को नही बचा पाया ज्यादा से ज्यादा 7 पीढ़ी तक श्रीकृष्ण जी ने तो यध्वंशी कुल में सिर्फ जन्म इसी लिए लिया था कि यध्वंश का नाश कर सकूं और किया भी नास फिर आज भी कही लोग अपने आप को यध्वंशी कहते है इस का मतलब इतिहास झूटा है या तथ्यों को तोडा गया है।

खत्री जाति उत्तराखण्ड में शिल्पकार समाज की मूल जाति है पर हिन्दू राष्ट्र नेपाल के खत्री उच्च जाति में आते है। कुल मिला के रामकृष्ण मरामहनश व राजाराम मोहन राय भी आज जीवित होते तो खून के आंसू रोते कि क्या बनाया था हम ने समाज को व क्या बना समाज। 4 सौ साल तक राज करने वाले अंग्रेज जिस जहाज को सूरत तक लाये थे पहली बार उस का कैप्टन भारतीय तो नही था पर जाते समय जिस जहाज से वो गए उस का जहाज भारतीय था उस की वजह थी जातिगत क्षेत्रीयता व सामाजिक विछेदन अल्प व गोंण सोच।
हम अपने लेख के माध्यम से किसी ब्यक्ति समाज व जाति के लोगों की भावना को ठेंस नही पहुंचाना चाहते है पर उन लोगों को आइना दिखाना चाहते है जो धर्म का ठेका चलाते है धर्म के नाम पर राजनीति करते है। हम किसी ब्यक्ति विश्लेषण में नही पड़ते है न सामाजिक गुटता में हम कोई सरोकार रखते है पर लोगों के आंखे खोलने का काम कर रहे है कि धर्म नही कर्म प्रधान होते है जाति वाचक नही जन सेवक बनों,,राम व रावण एक ही राशि के थे पर काम विपरीतार्थक थे कृष्ण व कन्स भी एक ही राशि के थे पर कर्म उलट थे यथा नाम तथा गुण सम्भव नही है कर्मम परम् धर्मम होता है।

कर्म ही पूजा है न कि कुल ऊंचा होता है तो कर्म भी ऊंचा होगा। आज अगर आप के जेब में पैसे है तो आप ठाकुर हो। जो लोग दलितों को मन्दिर में नही घुसने देते है व उन के हाथ का पानी नही पीते है उन को पता भी नही होगा कि इस वक्त देश में दो दलित देश के सरवोच्च पद पर आसीन है,,प्रधनमंत्री व राष्ट्रपति देश के दलित समाज से है। फर्क क्या है देखो......सोच इन्सान को निम्न जीवनशैली में लेजाता है न कि उस की जाति आप किस जाति समाज मे  पैदा होते हो वो तो आप के हाथ में नही है पर आप उस समाज को किस तरह से दुनियां में अस्थान देते हो आप के गुणों की बात है।
पण्डित लोग उत्तराखण्ड के ठाकुरों के घर की रोटी तो खाते है पर चांवल नही खाते,,ठाकुर लोग जोगी समाज के साथ खाना तो खाते है पर उन को अपनी रसोई में नही जाने देते मगर पण्डित लोग जोगी समाज के साथ बैठते भी नही है और जोगी समाज शिल्पकार समाज के साथ उठते बैठते भी नही अब ये थ्योरी पेचीदा है कि आखिर ऐसा क्यों या तो इस के पीछे बड़ा लॉजिक है या फिर मिथ्या है मंनगणत कहानी होगी पर हम ने सब के साथ खाना खाया है न खाने का स्वाद बदला न खाने का रंग न हमारे जीवन का ढंग कुल मिला के या तो हम अज्ञानी है या मूर्ख या फिर हमारे जीवन के दिनकर का उदय होने वाला। जो भी हो समाज हित में हो तो ठीक भी है वरना हम अंधेरे में ही सही।
अगर हम ज्यादा दूर भी न जायें सिर्फ लेमार्क वाद और डार्मिन वाद पर भी बात करें तो उन दोनों के रिसर्च में एक समानता है,,जो प्राणी धरती पर सर्वसक्तिमान रहा वो उतनी जल्दी खत्म भी हुआ खुद के वर्चस्व की लड़ाई में खुद ही का नाश होता है।
आज जहां लोग पँवार(परमार) वंश के लोगों को छोटी जाति में मानते है शिल्प व कला जाति के मानते है वो भी निरर्थक है पँवार वंश ने 8 वीं सदी से लेकर 13 वीं सदी तक समूचे भारत से नेपाल तक राज किया था पँवर वंश के राजा पद्म सिंह पँवार ने साहित्य व कला का सृजन किया था उन्हों ने अपने 42 साल के राजसी जीवन में 13 खण्ड काब्य की रचना भी किये वो साहित्य व शिल्प प्रेमी थी पर पँवार वंश के खत्म होते ही लोगों ने पँवार वंश को ज्ञानी नही शिल्प कला के रूप में पहचान देदी। असवाल जाति के लोग भी इसी तरह की घटना के शिकार बने है असवाल जाति में भी मालू असवाल भीमसेन असवाल बहुत ही बड़े प्रतापी राजा हुए करते थे पर आज लोगों ने असवाल जाति को निम्न जाति की सूचि में रखा है। सब अपने मतलब की बात है। अगर यादव जाति के लोग कृष्ण जी के परिवार व वंशक है तो फिर दलित कैसे हुए व आरक्षण किस बात का मांगते है लोग। श्री भविष्यत पुराण में साफ लिखा गया है कि अगर धरती से जाति धर्म की कड़ी खत्म हुई तो कोई झगड़ा नही होगा अगर धरती से गाय व मधुमक्खी खत्म हुई तो धरती 4 साल में खत्म है और आज सारी लड़ाई गाय पर हो रही है। इतिहास गवाह है किसी का झंडा ज्यादा दिन तक बुलन्द नही रहता है।
अर्थात परिवर्तन प्रकृति का नियम है जिस का उदय हुआ है उस का अस्त होना जरूरी है तभी मानवता का भला हो सकता है वरना प्राणियों पर खतरा है।
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लेखक -:देवेश आदमी (प्रवासी)
सम्पर्क-: 9716541803
पट्टी पैनो रिखणीखाल

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