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गर्जिया मंदिर

           गर्जिया मंदिर  
     देवभूमि उत्तराखंड को प्रक्रति ने सौन्दर्यशाली उपहारों के साथ-साथ अनुपम चमत्कारिक दिव्य स्थल भी प्रदान किये है, ऐसे दिव्य स्थल जहाँ पहुच कर सांसारिक मायाजाल में उदिग्न प्राणी को एक अनंत दिव्य शांति की प्राप्ति होती है। कल-कल धुन में बहती हुई नृत्य करती नदियां, सौन्दर्य का खजाना बिखेरे शिवालिक पर्वत, पर्वतों की चोटियों में स्थित देव दरबार, हिमालय की विहंगम छाटाएं इस बात को प्रभावित करती है कि वास्तव में आध्यात्म के कहीं साकार दर्शन होते है तो मात्र उत्तराखंड में।
     नदियों के किनारे स्थित देव मंदिर तो पहाड़ो की ऐसे संजीव धरोहरे है जो पावनता को दिव्यता को पूर्णता के साथ रेखांकित करती है। शायद तभी हमारे देश के ऋषि-मुनियों ने अपनी आराधना व स्तुति के लिए गंगाओं के तट को सिरोधार्य माना, चाहे सरयू हो या रामगंगा, अलकनंदा हो या कालीगंगा या अन्य तमाम पावन नदियां जो गंगाओं का रूप धारण कर बहती है,सभी के तटों पर देवालयों की भरमार है। कदम-कदम पर शक्तिपीठ नदियों के तटों की शोभा बढाते नजर आते है, लेकिन इन तमाम आध्यात्मिक चमत्कारों की इतिश्री यहीं पर यूं ही नहीं होती क्योंकि यहाँ के दिव्य स्थलों की महिमा अनंत है, अपरम्पार है। सबसे महान आश्चर्य तो यह है कि तटों के अलावा पावन गंगा की गोद में भी शक्तिपीठों की कोई कमीं नहीं है। चाहे सैल्जाम नदी के बहतें पावन आँचल में सूर्यदेवी का मंदिर हो या रामगंगा की गोद में श्रीराम का मंदिर हो, सभी महान आश्चर्यों को प्रकट कर भक्तजनों के ह्रदय में हिलोरे भर देती है। इन स्थलों को देखकर भावनाओं का संगम इन शब्दों में प्रकट होता है "तेरी महिमा से बढ़कर और महिमा इस जहाँ में कहा" महान रहस्य व आश्चर्य का प्रतीक माँ गार्जिय देवी के दरबार की महिमा तो अपरम्पार है साथ ही अलौकिक आश्चर्य का भी महान प्रत्यक्ष पुंज है, जो रामनगर के समीप कलकलाती कोसी नदी के बेचों-बीच स्थित है। श्रद्धालू जगदम्बिके को गिरिजा रूप में पूजते है।
     माँ गार्जियां देवी की शक्तिपीठ समस्त अलौकिक कामनाओं को प्रदान करती है। कहते है की जो मनुष्य आराधना के श्रधाशुमन माता के चरणों में अर्पित करता है उसके सभी कष्टों का हरण हो जाता है। गिरिजा को वैष्णवी के रूप में भी पूजा जाता है। गिरिजा माँ गौरा का दूसरा रूप है। यह दरबार रामनगर जनपद नैनीताल से लगभग १४ किमी की दूरी पर गर्जियां गाँव में  स्थित है। भक्तजन प्रतिवर्ष यहा आते है। सौन्दर्य से भरपूर कोशी नदी की गोद में जिसे मध्य टापू के नाम से पुकारा जाता है यह दरबार स्थित है। 
     रहस्यों से भरे इस दरबार के बारे में उनके दन्त कथाएं प्रचलित है, जिनमे से एक कथा का वर्णन इस प्रकार है। कहते है कि माँ गौरी का यह दरबार पहले यहा से कोसों दूर ऊपर स्थित था, बाबा भैरवनाथ ने देवी की अनन्य उपासना की जिससे प्रसन्न होकर देवी ने भैरवनाथ से कहा कि हे भैरव मई दूरस्थान से बहते हुए तेरे पास आ रही हू, जहां पर तू मुझे पुकारेगा मई सदा के लिए वहीँ ठहर जाउंगी, कहते है कि जब यह टीला माँ कोसी की आँचल में लहराते नृत्य करते बहते आ रहा था, तो भैरव ने कहा बहिन ठहरों यही पर विराजमान रहकर जगत को कल्याण प्रदान करो। यही तुम्हारे इस भक्त की अभिलाषा है। माँ गिरिजा को कल्याणी देवी के नाम से भी पूजा जाता है। भैरव की अभिलाषा पूर्ण होने पर उन्होंने इन्हें उपटा देवी के रूप में पूजा। कालांतर में भक्त इन्हें गिरिजा देवी के रूप में पूजते है। टीले पर अवतरित शक्ति को सुन्दर भव्य मंदिर का रूप दिया गया है। मंदिर के समीप श्रीगणेश जी व भोलानाथ भी विराजमान है। मनौती पूर्ण होने पर भक्त घंटी व चांदी के छत्र आदि चढाते है। मंदिर तक पहुचने के लिए ९० सीढियां चढ़नी पड़ती है। स्थानीय श्रधालुओं के अलावा देशी-विदेशी पर्यटक भी यहां आते है, तथा माँ की कृपा पाकर धन्य हो जाते है।देवी के दर्शन के साथ ही श्रीगणेश, भैरवनाथ व शिवजी के दर्शनों की महत्ता अनिवार्य बतलाई जाती है।
अनोप सिंह नेगी(अनिल)

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