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Samon Dharohar Chau Khambya Tibar समौंण धरोहर चौ-खंब्या तिबार

Samon Dharohar Chau Khambya Tibar समौंण धरोहर चौ-खंब्या तिबारसमौंण धरोहर "चौ-खंब्या तिबार"---
  रूद्रप्रयाग जनपद के दानकोट गाँव की आकर्षक तिबार
         तिबार का निर्माण - स्व दौलतराम गौड़
         काष्ठकला -क्यार्क बसुकेदार के हस्तशिल्पी।
       ----निर्माण लगभग 1949 के दौरान---
तिबार के चारों खंबे सत्तर साल के अंतराल पर भी ज्यों के त्यों खड़े है, जहाँ आज हमारे मकान,पुल, सिमेंट-सरिया, छत बनने के बाद दस साल के अंदर ही जबाव दे रहे है। ऐसे में, ये तिबारे गवाही देती है, उस समय के शिल्प कला और विज्ञान की जब विज्ञान सैद्धांतिक पढ़ाया नही जाता था बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी सरकता था। किताबों से इतर आधुनिक औजारों की कमी के बाद भी पहाड़ों की ये कला हमारे लिए ताजमहल से कम नही।
चारों खंबों पर जहाँ नीचे कमल का फूल है, वही ऊपर आकर्षक डिजाइन और उस डिजाइन के बाहर लटकन।
लटकन पर ही चारों खंबों पर पहाड़ी पक्षी की सुंदर तराशी कलाकृति ।
इस तिबार तक आने के लिए खोळी का दरवाजा है, खोळी पर परंपरानुसार विध्न विनाशकारी गणेश जी विराजमान है---
---- जिनसे हम रोग ब्याधि कष्ट मिटाने हेतु सदैव भजते थे----
    दैंणा होया खोळी का गणेशा  हेऽऽऽ----
     दैंणा होया म्वोरी का नारैण हेऽऽऽऽऽ----

Samon Dharohar Chau Khambya Tibar समौंण धरोहर चौ-खंब्या तिबारधन्य थे ऐसे  हस्तशिल्पी कलाकार, जिनकी नौखंब्या, चारखंब्या इन कलाकृतियों में दो लकड़ी के जोड़ हमें हैरत में डाल देते है, आप बता नही पाओगे जोड़ है कहाँ?
कहीं भी इन्हें जोड़ने हेतु कील का प्रयोग नही मिलेगा!
इन लकडियों पर निरंतर पेंट, तेल और देखभाल के अभाव के बावजूद भी दीमक कीड़ों का अतिक्रमण नही मिलेगा!
यकीनन ये अंत समय तक भी थामे रहेंगी मकान-से धुर्पळि और छज्जे तक की एक एक पठ्ठाली को,
और पहाड़ जैसे हौंसले के साथ तीन पीढ़ियों के वजूद का ठौ-ठिकाना बनी हुई है।
अभी भी कई दशक ठेल सकती है बिल्कुल हिमालय की तरह।
ये गिनीचुनी तिबारें आज अंतिम समय में  है यानि सीमेंटीकरण, टाइल्सीकरण की चकाचौंध मैं इन तिबारों का भविष्य चुकपट्ट है।
लोग अब भले ही मकान नक्काशी मैं इन्हें जगह ना दें
और आने वाले दशक मैं मोबाइल सेल्फी मैं ही दिखेंगी,
पर पढे-लिखे आर्किटेक्चर के लिए शोध का विषय जरूर बनेंगी।

----@अश्विनी गौड़ दानकोट अगस्त्यमुनि बिटि

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