वैसे तो पुरे हिमालय मे चलना बहुत मुश्किल होता है व हर एक कदम पर पर्वतारोही को संघर्ष के साथ समर्पंण का परिचय देना होता है चरा सी चुक आपको क्लिन बोल्ड के रुप मे सैकडों हजारों फिर गहरी अंधेरी व भयानक बर्फ की संकरी दरारों (क्रैवास) रुपी पैवेलियन मे डाल सकती है लेकिन यदि दुनिया का कोई खेल है तो वो यही साहसिक खेल है जहां आरोही कठिन से कठिन व दुर्गम से दुर्गम रास्ते को आरोहंण पथ के लिये चिह्नित कर आगे बढते हैं यही तो एक मात्र यैसा खेल है जहां पर्वतारोही स्वयं ही रैफरी स्वयं दर्शक व स्वयं ही खिलाडी का रोल अदा करता है ईस खेल मे दिल दिमाग ओर साहस के साथ साथ शारीरिक तंदरुस्त होना बी बहुत जरुरी है ईतना सब कुछ जानते हुये भी कि ना जाने कौन सा पग आखरी पग बन जाये देश दुनिया के हजारों पर्वतारोही व ट्रैकर हर साल हिमालयी यात्रा पर निकलते हैं! हमारा गढ़वाल हिमालय जो लगभग 325 किमी मे फैला हुवा प्रकृति की सुंदरता को समेटे हुये ऊंची ऊंची चोटियों सहित ना जाने कितने trek, pass, ओर बडे बडे बुग्यालों के लिये बैश्विक मानचित्र पर अपनी अलग ही पहिचान रखता है वैसे तो हर साल ही यहां हजारों बहारी पर्यटक पहाडों की सैर करते हैं लेकिन फिर भी अभी तक उत्तराखंड पर्यटकों को ईतना आकर्षित करने मे सफल नही हो पाया जितना की होना चाहिये था यदि सरकार पलायन को रोकने की बात करती है तो यहां के युवाओं को बिशेष तौर पर ईस क्षेत्र मे गाईड के तौर पर प्रशिक्षित करवाये व सैलानियों को गडवाल हिमालय की यात्रा के लिये प्रोत्साहन दे ईससे निश्चित राज्य की अर्थ ब्यवस्था मजबुत होगी व युवाओं को स्वरोजगार मिलेगा नये नये ट्रैक बिकसित किये जायें ओर साहसिक पर्यटन व तीर्थाटन को ज्यादा से ज्यादा बढावा मिले तो निश्चित ही जो युवा महानगरों मे आजीविका के लिये कस्तुरी की तरह दर दर भटक रहे हैं वे निश्चित ही वापसी का रुख करेंगे सरकार को राज्य के अनुभवी व प्रशिक्षित ट्रैकर व पर्वतारोहियों की मदद से साहसिक पर्यटन को धरातल पर मजबुत करने के लिये ठोस रणनीति की आवश्यक्ता है मुझे उम्मीद है राज्य के बर्तमान व तेजस्वी पर्यटन मंत्री माननीय सतपाल महाराज जी राज्य को साहसिक पर्यटन के रुप मे अपनी ओजस्वी नीति से बैश्विक पटल पर नयी पहिचान दिलायेंगे . जय हिमालय
लेख साभार
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