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मेरी व्यथा और चकबन्दी main aur meri vyatha

गणेश सिंह नेगी "गरीब"
"पहाड़ राला त तेरी पछ्याण रैली
कखि भी रैली अपणु वजूद बतैली
यु पहाड़ नि राला त लोगु क्या बतैली
पहाड़ी खून छै कभी न कभी बौड़ी कन नि ऐली।"


मैं वर्तमान में दिल्ली के द्वारका उपनगरी में परिवार सहित रह रहा हूँ बचपन से ही दिल्ली में ही रहा यही बड़ा हुआ पला बढ़ा लेकिन इसके बावजूद भी दिल्ली से लगाव नही बना पाया शायद बचपन की 5   6 साल की गाँव की कुछ यादे है जिन्हें भुला नही पाया हूँ इसलिए हमेशा से ही गाँव लौट जाने की इच्छा है लेकिन परिस्थितिया साथ नही दे रही है जिसके कारण मन मार इस शहर में रह रहा हूँ। 
आज हालात बेरोजगार सी है लेकिन फिर भी गाँव लौटने का मन बनाता हूँ।
 लेकिन शुरुआत कहा से करू समझ नहीं पा रहा गाँव जाकर क्या करू?
कहा पर करू? 
कुछ पारिवारिक समस्याएं भी है जीके कारण भी खुद को रोक लेता हूँ। कुछ करना चाहता हूँ लेकिन कर नहीं पा रहा कारण मेहनत तो मैं कर लू लेकिन मेहनत करनी क्या है कैसे है किस दिशा में करनी है राह नहीं दिख रही। दूसरा काम कुछ भी करू इन्वेस्टमेंट आवश्यक जो मेरे पास उपलब्ध नहीं। 
यदि खेती भी करता हूँ गाँव लौटकर तो हल चलाना तक नहीं आता। किसी दूसरे से करवाता हूँ तो पहले तो कोई राजी नही होगा और हो भी जाए तो 8 से 10 खेत है वो भी उत्तराखण्ड के आप सभी के गाँवों के तरह एक खेत कही तो दूसरा कही और जिससे हल लगाने वाला चाहकर भी एक दिन में उसे पूरा नहीं कर सकता कम से कम 4 से 5 दिन तो ले ही लेगा उसके अनुसार उसे मेहनताना देना भी आवश्यक।
यहाँ तक भी ठीक है लेकिन इसके बाद फसल जमने बाद में लगती है उससे पहले सूअर बंदर और कुछ पक्षी उसे अपना भोजन बना लेते है। कुछ छोड़ भी दिया तो मौसम की मार तो आप सभी को पता है जब बरसात चाहिए तब होती नहीं और जब किसी तरह से उस फसल को तैयार किया जाता है तो बरसात सब बर्बाद कर जाती है। यहाँ से भी कुछ बचा तो वो अपने लिए ही पूरा नहीं कर पाते है अब आगे आप जानते ही हो सरकार की तरफ से कोई रेट तय होते नहीं यदि किसान कुछ बेचे भी तो किस भाव बेचे कम से कम महापंचायत स्तर पर नहीं तो ब्लॉक स्तर पर एक विपणन केंद्र सरकार की तरफ से हो और कुछ रेट तय हो तब भी किसान कम से कम जो उसकी लागत है उसे पूरा कर सकेगा लेकिन वह भी संभव नही हो पाता है। नतीजा व्यापारी लोग आकर सौदा करते है और उनके अनुसार कौड़ियो के भाव किसान अपनी मेहनत व्यापारी को बेचनी पड़ती है।
मजबूर होकर पहाड़ी पहाड़ से पलायन करने लगता है और शहरो में 8  10  15 हज़ार की नौकरी 8x10 के कमरे में गुजारा करता है। और कुछ समय बाद जब वो टूटने लगता है फिर पहाड़ की याद आती है जो उसके पास है उसे भी वो खो चुका होता है। इसका एक उदाहरण तो मैं स्वयं को ही मानता हूँ। लगभग आधी उम्र शहर में बीत चुकी है फिर भी आज की तारीख में शून्य पर ही खड़ा हूँ। क्या मालूम गाँव में होता तो शून्य से कुछ तो ऊपर होता। लेकिन आज वहा से फिर भी पलायन हो रहा है तो कारण वही सब है जो ऊपर मैंने अपने लिए लिखे है। लोग स्वास्थ्य और शिक्षा सिर्फ साथ में जोड़ते है कि इनका आभाव है इन दोनों का आभाव तो जायज़ है होगा ही क्योकि जब गाँव में पढ़ने वाला एक विद्यार्थी हो और अध्यापक कम से कम दो हो फिर एक भोजन माता उसके बाद विद्यालय में बिजली पानी आदि ऐसे ही बहुत से खर्चे होते हैं, तो क्या उस एक विद्यार्थी के लिए दो अध्यापक और एक भोजन माता और बाकि के खर्चे सरकार देगी शायद नहीं क्योंकि यदि आप स्वयं भी एक विद्यालय चलाएंगे तो उस विद्यार्थी को किसी दूसरे विद्यालय में स्थानांतरित कर विद्यालय को बंद कर देंगे और वही सरकार भी कर रही है। इसका नतीजा तीन लोग और बेरोजगार अध्यापक तो शायद किसी दूसरे विद्यालय में भी जा सके लेकिन वो भोजन माता तो बेरोज़गार हो जायेगी यह निश्चित है।
और यह समस्या मेरी अकेले की नहीं अपितु मेरे जैसे अन्य बहुत से लोगो की है जो आज अपने गाँवों से लगभग पूर्ण रूप से स्थायी पलायन कर चुके है या करने का मन बना रहे है।
अब आप लोगो से मेरी एक अपील!!!! 

पहली अपील उन लोगो से जो उत्तराखण्ड के अपने गाँवों में रह रहे है उनसे है।
दोस्तों हम लौट पाये या न लौट पाये लेकिन गाँव में रह रहे लोग स्थायी पलायन करके बिल्कुल भी शहरो तक न आये कुछ नहीं है इन शहरो में बस कुछ दिन की चकाचौंध है और इसके बाद वही पुराने दिन याद आने लगेंगे।

दूसरी अपील उन साथियो से है जो शहरो में है उनसे है।
दोस्तों कोशिश करे कि आपके गाँव से यदि कोई स्थायी पलायन न हो इसके लिए गाँव में रह रहे लोगो के लिए कुछ ऐसे रोज़गार उतपन्न किये जाये कि वो पलायन न करे। और यदि हम एक व्यक्ति को भी हम वहा रोक पाये तो शायद यही हमारी कामयाबी होगी। इसके लिए हम जो अपने गाँवो से दूर है आपस में मिलकर हर महीने यदि कुछ कम से कम पैसे जमा करे और उसे गाँव के ही किसी ऐसे व्यक्ति पर लगा दे जो वहा स्वरोजगर करना चाहता है। और यह भी जरुरी हो कि एक पर लगाये तो उसके द्वारा कम से कम दो लोगो को रोज़गार भी गांव में ही मिल सके। और उससे उस धन को वापिस लेने की अपेक्षा न रखते हुए बल्कि किसी दूसरे के लिए रोज़गार तैयार करने में उसका सहयोग अवश्य लिया जाए। और इसी तरह यदि होता रहा तो शायद फिर गाँवो में ही लोगो को रोज़गार मिलने लगेगा और ऐसा यदि हो गया तो लोग पलायन करना भूल जायेंगे बल्कि पलायन कर चुके साथी भी वापिस लौटने लगेंगे।
अनोप सिंह नेगी "खुदेड़"
साथियो साथ के साथ हमे एक और कार्य करना है उत्तराखण्ड में वर्तमान में एक ऐसी एकमात्र संस्था है जो अभी तक किसी से भी आर्थिक मदद के बिना उत्तराखण्ड में चकबन्दी के लिए मांग उठा रही है और आपको भी इस अभियान से जुड़ना है और इस अभियान को आगे बढ़ाना है। और ये इसी संस्था की देन है कि आज उत्तराखण्ड में सरकार चकबन्दी के लिये सहमत हो गयी है। लेकिन सहमति मात्र से काम नहीं होगा धरातल पर इसे उतारने के लिए आपको भी इस संस्था के साथ इसकी आवाज़ बनकर इसे आगे बढ़ाना है। दोस्तों सम्पूर्ण उत्तराखण्ड में ऐसी परिस्थियां होनी चाहिए की चकबन्दी अवश्यक है यह सरकार में बैठे अधिकारी समझ जाये और जल्द से जल्द इसे धरातल पर उतारे।
और इस अभियान का नाम है गरीब क्रांति अभियान उत्तराखण्ड इसकी अधिक जानकारी आप इस लिंक पर देख सकते है।
दोस्तों अभी तो बहुत से लोग चकबन्दी का अर्थ नहीं समझ पाते है अक्सर चकबन्दी को खेतो की तारबाड़ को समझते है लेकिन चकबन्दी आपके खेतो को सुव्यवस्थित करने का एक उपाय है। जिसके अंतर्गत आपके बिखरे खेतो को एक ही स्थान पर कर दिया जाता है इन्ही खेतो के बीच पानी की नहरे भी होंगी जो सिंचाई के लिए सहयोगी होगी। और सबसे बड़ी बात जो मैंने ऊपर लिखी की खेती तैयार होने से पहले जानवर पक्षी इसे अपना भोजन बना लेते है और यदि जब खेत सब एक सामने होंगे तो आपको देखरेख करने के लिए भी आसानी होगी जानवरो से आप तारबाड़ करके खेतो को बचा सकते हो खेतो की जुताई जैसा कि मैंने कहा मेरे 8 से 10 खेत है यदि एक ही जगह पर होंगे तो शायद मैं इन सब खेतो को एक या दो दिन में पूरा कर सकता हूँ और मुझे हल चलाना नहीं आता इसलिए किसी दूसरे से कहूँगा तो उसे भी रोज़गार मिल जायेगा।
तो इसलिए दोस्तों आप इस अभियान से जरूर जुड़े और अभियान को आगे बढ़ाये आपसे अन्य संस्थाओ की तरह यह भी नहीं कहा जाएगा कि आज धरना देना है जंतर मन्तर पहुचो या किसी नेता का घेराव करना है वहा पहुचो बस आपसे इतनी ही अपेक्षा है कि आप इस अभियान से जुड़े और उत्तराखण्ड में इसकी जरूरत पैदा कर दे।
चकबन्दी की मांग तो समय समय पर उठती रही है, किन्तु जनसमर्थन न होने के कारण चकबन्दी पहाड़ो में हो नहीं पायी क्योकि एक तो इसके बारे में ज्ञान कम और दूसरा कठिन होने के कारण हमारे नेता और अधिकारियो इसे दबा कर ही रखा है। जिसके कारण आज उत्तराखण्ड आगे की बजाये पीछे की तरफ जा रहा है। आज हमारा पहाड़ी क्षेत्र एक अलग राज्य बनने के पश्चात् और अधिक पिछड़ा है, अब इसको आगे बढ़ाने के लिए हमारा प्रयास होना चाहिए कि हम इसे आगे बढ़ाये कैसे बढ़ाये।
एक ऐसे युवा नौजवान ने दिल्ली में अपना कारोबार सब ख़त्म करके घर फैक्ट्री सब बेचकर कई वर्ष पहले वापिस जाकर चकबंदी के लिए आवाज़ उठाई आज उनकी उम्र लगभग 83 वर्ष है किन्तु फिर भी उन्हें मंज़िल नहीं मिली क्या ऐसे कर्मठ योगी व्यक्ति का सपना पूरा करने के लिए हम अपना कुछ समय नहीं दे सकते वो भी अपने अनुसार यह नही कि आप अपना काम छोड़कर फिर करो ऐसी अपेक्षा नहीं रखते हम। ये नौजवान आज वृद्ध है लेकिन आज भी चकबन्दी के विषय में यदि कही से उन्हें बुलाया जाता है तब भी वो अपने स्वास्थ्य की परवाह किये बिना पहुँच जाते है पहाड़ो की लम्बी दूरी तय करके।
दोस्तों कुछ समय पहले किसी ने इनके ज़ज्बे को देखा उसे समझा और जाना कि चकबन्दी क्या है और ये पहाड़ो के लिए किस प्रकार से वरदान सिद्ध हो सकती है, यह सब समझने के पश्चात् इन कुछ लोगो ने मिलकर इनकी इस तपस्या को एक नाम दिया और उसी का नाम है "गरीब क्रांति अभियान उत्तराखण्ड" यह वः व्यक्ति है जिनको 2012 में आपने रोड़वेज की बसो भी शायद चकबंदी का प्रचार करते देखा होगा बिल्कुल उनकी तरह जैसे आजकल पेन किताब आदि लेकर कुछ लोग सामान बेचने के लिए करते है।
हमने तो इतना कुछ नहीं करना बस अवश्यकता पैदा करनी है और इसके लिए जादा कुछ नहीं करना बस इतना ही करना है कि हमे एक बड़े संगठन के रूप में सरकार के सामने आना है ताकि सरकार और अधिकारियो को लगे कि अब तो चकबंदी करनी अति आवश्यक हो गयी है और कर दो चकबंदी।
जब समय मिले तब आप इस विषय पर अपनी तरफ से कुछ लिखे। और सोशल मिडिया आज इतनी बड़ी ताकत बन चुकी है इसका सही दिशा में प्रयोग करे।
इनके इस अभियान को कुछ साथियो ने मिलकर 2012 में
आप अपने स्तर पर इस अभियान में अपना सहयोग किसी भी प्रकार से दे सकते है जैसे कि लिखन में रूचि रखने वाला लिख सकता है, कोई कलाकार है वो अपनी कला के अनुसार, गायक जन आवाज़ बनकर, कोई अपना कुछ समय देकर, कोई यह सब नहीं कर पाता है और कहता है मैं समय नहीं दे सकता लेकिन आर्थिक मदद कर सकता हूँ तो इस प्रकार से भी आप इस अभियान में सहयोग दे सकते है। किसी भी तरह कोई यदि अपना सहयोग कर सकते है तो सहयोग अवश्य करे ताकि जिस प्रकार बहुत से हमारे साथियों ने गाँव की तरफ रिवर्स पलायन किया है हम जैसे अन्य भी इस कड़ी में जुड़ सके। और अपने पहाड़ो को एक बार फिर से जीवन्त बना सके।
दोस्तों आपसे निवेदन भी है की आप नेताओ को अपना आइकॉन बनाने से अच्छा ऐसे कर्मठ व्यक्ति को अपना आइकॉन बनाओ। श्री गणेश सिंह गरीब जी की तश्वीर इसी पोस्ट में उपलब्ध है। यहाँ से आप फ़ोटो को ले और कुछ दिन के लिए ही सही इन्हें अपना प्रोफाइल पिक बनाये व्हटस् एप्प पर आइकॉन बनाये ताकि कोई न कोई आपसे पूछे ये कौन है तो आप उनको बता भी सके कि इन्होंने उत्तराखण्ड के विकास के लिए क्या प्रयास किये है।
और जानकारी के लिए ऊपर लिखी वेबसाइट का भी अवलोकन करे। और यदि आप किताब भी मंगवाना चाहते है तो किताब भी मंगवा सकते है देशभर में कही भी किताब की सहयोग राशि ₹50/- मात्र है और डाकखर्च अलग से।
किताब के लिए नीचे दिए मेरे नम्बर पर संपर्क कर सकते है। या दिल्ली एनसीआर में जगमोंहन सिंह "जिज्ञासु" जी से संपर्क कर सकते है

9654972366
उत्तराखण्ड में कपिल डोभाल जी से संपर्क कर सकते है

9634542086
यही अपने शब्दों को विराम देते हुए आपसे अपेक्षा करता हूँ कि आप इस पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करे। 
जय उत्तराखण्ड


सदस्य गरीब क्रांति अभियान उत्तराखण्ड

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