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सुदेश भट्ट दगड्या

नमस्कार दोस्तों आज एक नयी अभिव्यक्ति से आपको परिचय करवा रहा हूँ ये ऐसे व्यक्तित्व के धनि है शायद जो परिचय के मोहताज़ नही इनकी लेखनी ही इनकी सबसे बड़ी पहचान है।
कभी-कभी कुछ अजीब हो जाता है उन अजीब घटनाओ में से एक घटना मेरे संग ये भी घटी गलत नम्बर डायल हो जाने पर कभी कभी लड़ाई भी हो जाती है तो कभी-कभी ऐसी दोस्ती भी हो जाती है जो रिस्तो में भी बदल जाती है कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ मार्च 2016 की बात है मैं अपने गरीब क्रान्ति अभियान से जुड़े साथियो के साथ उत्तराखण्ड की राजधानी(जो आज तक बन न सकी) गैरसैण गया था। वहा मेरी मुलाकात भाई मनीष सुन्द्रियाल जी से हुई। यु तो उस दिन उत्तराखण्ड की बहुत सी महान विभूतियो से प्रथम बार मिला जिनके बारे में भविष्य में अवश्य लिखूंगा अभी मैं इस लेख के लिखने के उद्देश्य पर आता हूँ। वैसे तो सोशल मीडिया के माध्यम से मैं मनीष सुन्द्रियाल जी से पहले ही परिचित था किन्तु ये मेरी उनसे पहली मुलाक़ात थी। मनीष जी एक ऐसे युवा है जो पहाड़ में स्वरोजगार की मशाल हाथ में लिए घूम रहे है मैंने भी उनसे कुछ बुरांस और माल्टा का जूस ले लिया दिल्ली के लिए। और पहुच गया दिल्ली में। फिर लगा बेचने कुछ समय पश्चात जूस समाप्त होने लगा तो मैं उन्हें फोन करने लगा उन्होंने व्यस्तता के कारण फोन का जवाब नहीं दे पाया तो मैंने उनकी एक ऐड थी जो एक अख़बार बैजरो से सम्पादित होता है लोकल रिपोर्टर जिसे भाई बलवंत गुसाईं जी बखूबी बैजरो से चला रहे है। ये भी एक बड़ी हस्ती है दिल्ली से अच्छी नौकरी छोड़कर पहाड़ो में ही कुछ करने का मन बना निकल पड़े पहाड़ो की ओर। तो उसी अख़बार में सुन्द्रियाल प्रोडक्शन की ऐड के साथ जो नम्बर था वो था मेरे आज के शीर्षक मेरे बड़े भाई समान नही बल्कि बड़े भाई का। मैंने उस नम्बर पर भी संपर्क किया लेकिन कोई जॉब न मिलने के कारण मायूस सा हो गया। कुछ देर बाद फिर प्रयास किया लेकिन फिर कोई जवाब नही ऐसे ही बारी बारी दोनों नम्बरो पर कोशिश करता रहा, लेकिन कोई जवाब न मिलने के कारण फिर मैं कुछ देर के लिए शांत हो गया। शाम के लगभग 5:00 बजे का समय होगा मेरे फोन पर एक अंजान फोन आया वहां से आवाज आई:-
हेलो आप की मिस कॉल आई थी मेरे नंबर पर
मैं- कहा मैंने तो सुन्द्रियाल जी का नंबर मिलाया था
उधर से:- मैं सुरेश भट्ट बात कर रहा हूं। बताइये क्या मदद कर सकता हूँ।
दोस्तों यही है मेरे आज के शीर्षक इस लेख के। इसके बाद हमारी बाते यु ही होती रही भाई जी के साथ फिर एक दिन मिलने का मन पक्का कर ही लिया तो पहुच गए मैं और भाई शंकर ढौंडियाल जी उनके निवास स्थान और कार्यस्थल भी दोनों एक ही जगह है दिल्ली के एअरपोर्ट के नजदीक ही शंकर विहार में। उनसे मुलाकात हुयी बाते हुयी उनके बारे में बहुत कुछ जाना।
सुदेश भट्ट "दगड्या" ये एक ऐसा नाम है जिसे हर कोई लगभग उत्तराखण्डी जानते ही है। शायद ही कोई वंचित हो। बचपन से ही लेखनी में में रूचि रखने वाले इस प्रकार अपनी कलम के साथ मगन होते चले की आगे ही बढ़ते रहे। भारत की फ़ौज में आप एवरेस्ट टीम के पर्वतारोही सिपाही है। साथ ही आप सामाजिक जीवन में भी विलीन रहते है पहाड़ के लिए हमेशा से बौल्या रहते है। बौल्या शब्द का प्रयोग इसलिए कहा मैंने क्योकि वो स्वयं ऐसे युवा साथियो की खोज में लगे रहते है। हमेशा कहते है:- हम थै बौल्या चैणा छन" आप मेरी इस कविता को पढ़ सकते है कि भट्ट जी को कैसे बौल्या चाहिए। आप कविताओ में ऐसी लेखनी रखते है कि जो हमारे दिलो को चीरते हुए मश्तिष्क में एक अजीब हलचल सी मचा देती है। शायद ही कोई स्थिति बाकि हो जिस स्थिति पर आपने न लिखा हो। व्यक्तिव ऐसा कि जिससे एक बार मिल जाओ शायद ही कोई भुला पाये।
लिखने को बहुत कुछ है आपके बारे में किन्तु फिर कभी लिखूंगा।
आज का इस पोस्ट को लिखने का उद्देश्य आपके जन्मदिवस पर आपका आशीर्वाद पाना और बड़ो से आपको आशीर्वाद दिलाना है।
आपको जन्मदिन की हृदय की गहराइयो से शुभकामनाये ईश्वर आपको लम्बी आयु दे आप सदा अपने हर कार्य में सफल हो और आगे बढ़ते रहो। ईश्वर से कामना करे है।
अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
9716959339
www.khudeddandikanthi.in

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