हरेला आयी हरेला आयी
चौदिशी बहार आयी
सारी, डाँडी काँठी हरियाली छायी
मन मा उमंग सब्यु का ल्यायी
सभी भै बंधु थै हरेला पर्व की बहुत बहुत शुभकामनाएँ समस्त खुदेड़ डाँडी काँठी परिवार की ओर से।
दोस्तों उत्तराखण्ड इस पर्व का अलग ही महत्व है जो की साल में तीन बार मनाया जाता है, लेकिन इस श्रावण माह के हरेला को अधिक महत्व दिया जाता है, क्योंकि ये सावन का महीना भगवान शंकर जी को समर्पित है, श्रावण माह से नौ दिन पहले पांच सात प्रकार के बीज किसी थाली या किसी मिट्टी के पात्र में बोये जाते है और फिर सावन माह के पहले दिन इसे काटा जाता है। कई जगह देखा जाता है कि लोग जौ आदि को गोबर से अपने घर के हर द्वार पर दोनों तरफ लगाते है।
कुमाऊ में भगवान शिव के संपूर्ण परिवार की मूर्ति बनाकर उसे सुखाकर फिर उसपर बिस्वार(चावल पीसकर बनाया जाता है)को इन मूर्तियों पर लगाया जाता है। इसके बाद रंगों से इन मूर्तियों को सुंदर सजाया जाता है फिर इनकी पूजा की जाती है तत्पश्चात इन्हें विसर्जित कर दिया जाता है।
हरेला मनाने का मकसद यह हुआ करता था कि उस समय वैज्ञानिक प्रयोगशालाएं नही होती थी इसलिए बीजो के परीक्षण के लिए पहले बीजो को बोया जाता था और 9 से 10 दिनों में पता लगाया जाता था कि फसल कैसी होगी। कम से कम 4 इंच से बड़ी फसल को ही हरेला मनाने के लिए उचित माना गया है। इस दिन लोग अपने घर के आस पास पौधा रोपण भी करते है।
दोस्तों हो सके तो आप भी इस पर्व को मनाये और पुराने रीति रिवाज़ों को जीवित रखे। इसमें संपूर्ण मानव जगत की भलाई है वैज्ञानिक तौर पर देखा जाये तो यह कार्य पर्यावरण रक्षा के लिए बेहद आवश्यक है।
मेरे पास यही जानकारी थी यदि और कुछ जानकारी हो तो अवश्य साँझा करे।
अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
9716959339
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