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jai deeba maa जय दीबा माँ


दोस्तों आप हम और पूरा संसार ये जानते है कि उत्तराखण्ड में देवी देवताओं का वास है। आज आपके लिए

जानकारी लेकर आये है वो है पौड़ी गढ़वाल में धुमाकोट के निकट माँ दीबा मंदिर के बारे में। तो आईये दोस्तों आज ये जाने की माँ दीबा ने किस प्रकार गोरखाओं से हमारी रक्षा की।



यह वह जगहहै जहा पहुचकर भक्तो कीहर मनोकामना पूर्णहो जाती है।यहाँ का इतिहासबहुत ही आश्चर्यजनकहै। समुद्र तलसे ऊंचाई २५२०मीटर है। दीबाने इस स्थान  परतब अवतार लियाजब गोरखाओ नेपट्टी खाटली परआक्रमण किया था।दीबा ने यहाँके सबसे पहलेपुजारी के सपनेमें दर्शन दिएऔर अपना यहस्थान बताया। औरइसी स्थान परउन्होंने इनकी स्थापनाकर दी। लेकिनयहाँ तक पहुचनाइतना आसन भीनही था क्योंकियह मार्ग सीधानहीं बल्कि काफीटेढ़ी-मेढ़ी गुफासे होकर उन्हेंतय करना था।आज भी जिसस्थान पर मतकी मूर्ती स्थापितहै। उस स्थानके नीचे गुफाहै किन्तु अबवह पूर्ण रूपसे ढक चुकीहै। उस वक़्तयहाँ पर मातासाक्षात् थी औरउनके साथ एकसेवक और वहइसी स्थान सेही सभी लोगोको गोरखाओ केआने की सूचनादिया करती थी।इस स्थान परकिसी की नज़रनहीं जाती थीकिन्तु वो सभीको यहाँ सेदेख सकती थी।और आज भीयहाँ पहुच करयदि आप देखोतो ऐसा हीहै, यहाँ सेचारो तरफ नजरजाती है लेकिनदूर-दूर तककही से भीयहाँ नजर नहींपहुचती।
     यहाँ परउस वक़्त गोरखालोग यहाँ कीजनता को जिन्दाही काट दियाकरते या कूटदिया करते थे।परन्तु माता हीउनसे उनकी रक्षाकिया करती थी।और अंत मेंमाता ने गोरखाओका संहार किया।और पट्टी खाटलीतथा गुजरू कोउनसे आज़ाद करवाया।उसके पश्चात इसस्थान पर जिसस्थान से मातालोगो को गोरखाओके आने कीसूचना दिया करतीथी, उस स्थानपर एक ऐसापत्थर था कीउसे जिस दिशाकी और घुमादिया जाता थाउसी दिशा मेंबारिश होने लगतीथी। और इसस्थान का यहाँकी भाषा मेंनाम धवड़या( आवाजलगाना) है।
     
दीबा  मंदिर की मान्यता के अनुसार दीबा माँ के दर्शन करने के लिए  रात को ही चढाई चढ़कर सूर्य उदय से पहले  मंदिरपहुंचना होता है। वह से सूर्य उदय के दर्शनबहुत शुभ माना जाता है। यहाँ की खाशियत ये है कि अगर कोई यात्री अछूता( परिवार में मृत्यु या नए बच्चे के जन्म) है और  अभी शुद्धि नही हुई है तो वह कितना भी प्रयास क्यों न कर ले यहाँ नहीं पहुँच सकता है। और कोई  कितना भी बूढ़ा होया बच्चा हो चढ़ाई में कोई भी समस्या नही होती है।
कहा जाता है कि यहाँ पर दीबा माँ भक्तो को सफ़ेद बालो वाली एक बूढी औरत के रूप में दर्शन दे चुकी है। यहाँ पर ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर के आस-पास के पेड़ मात्र भंडारी जाती के लोग ही काट सकते है, यदि कोई और कटे तो पेड़ो से खून निकलता है।

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