दोस्तों आप हम और पूरा संसार ये जानते है कि उत्तराखण्ड में देवी देवताओं का वास है। आज आपके लिए
जानकारी लेकर आये है वो है पौड़ी गढ़वाल में धुमाकोट के निकट माँ दीबा मंदिर के बारे में। तो आईये दोस्तों आज ये जाने की माँ दीबा ने किस प्रकार गोरखाओं से हमारी रक्षा की।
जानकारी लेकर आये है वो है पौड़ी गढ़वाल में धुमाकोट के निकट माँ दीबा मंदिर के बारे में। तो आईये दोस्तों आज ये जाने की माँ दीबा ने किस प्रकार गोरखाओं से हमारी रक्षा की।
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यहाँ परउस वक़्त गोरखालोग यहाँ कीजनता को जिन्दाही काट दियाकरते या कूटदिया करते थे।परन्तु माता हीउनसे उनकी रक्षाकिया करती थी।और अंत मेंमाता ने गोरखाओका संहार किया।और पट्टी खाटलीतथा गुजरू कोउनसे आज़ाद करवाया।उसके पश्चात इसस्थान पर जिसस्थान से मातालोगो को गोरखाओके आने कीसूचना दिया करतीथी, उस स्थानपर एक ऐसापत्थर था कीउसे जिस दिशाकी और घुमादिया जाता थाउसी दिशा मेंबारिश होने लगतीथी। और इसस्थान का यहाँकी भाषा मेंनाम धवड़या( आवाजलगाना) है।
दीबा मंदिर की मान्यता के अनुसार दीबा माँ के दर्शन करने के लिए रात को ही चढाई चढ़कर सूर्य उदय से पहले मंदिरपहुंचना होता है। वह से सूर्य उदय के दर्शनबहुत शुभ माना जाता है। यहाँ की खाशियत ये है कि अगर कोई यात्री अछूता( परिवार में मृत्यु या नए बच्चे के जन्म) है और अभी शुद्धि नही हुई है तो वह कितना भी प्रयास क्यों न कर ले यहाँ नहीं पहुँच सकता है। और कोई कितना भी बूढ़ा होया बच्चा हो चढ़ाई में कोई भी समस्या नही होती है।
कहा जाता है कि यहाँ पर दीबा माँ भक्तो को सफ़ेद बालो वाली एक बूढी औरत के रूप में दर्शन दे चुकी है। यहाँ पर ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर के आस-पास के पेड़ मात्र भंडारी जाती के लोग ही काट सकते है, यदि कोई और कटे तो पेड़ो से खून निकलता है।
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