गंगोत्री
दोस्तों पिछले अंक में हमने उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के बारे में लिखा था। आज हम यहाँ पर गंगोत्री के बारे में लिख रहे है। ये वो स्थान है जहा पर गंगा के लिए कठोर तप किया गया था।![]() |
गंगोत्री |
मंदिर के आंगन से बहार आने पर भागीरथ शिला दिखाई पड़ती है। इसी शिला पर भागीरथ ने गंगा को धरती पर लेन के लिए कठोर तप किया था। उनके तप के कारण गंगा जी पृथ्वी पर आयी। गंगा जी के पृथ्वी पर आने से सगर के साठ हजार पुत्रो का उद्धार हुआ था। अब इस शिला पर पिंडदान होते है। माँ गंगा जी को यहा विष्णु-तुलसी चढ़ाई जाती है। सामने भागीरथी बड़ी तेज़ी से बहती रहती है। स्नान करते वक़्त भय लगता है। यात्रीगण तट पर बैठकर ही स्नान करते है। यहा भागीरथी का घाट बहुत चौड़ा है। गंगा मंदिर के कपाट अक्षय तृतीया के दिन खुलते है, और गोवर्धन के दिन पूजा करके कपाट बंद कर दिए जाते है। सर्दियों में गंगा जी के पूजा मुखवा ग्राम से होती है। गंगा जी जेष्ठ मास शुक्ल पक्ष की दशमी मंगलवार को धरा पर आयी थी। अयोध्या के रजा सगर के सुमति और केशनी दो रानियाँ थी। केशनी का एक पुत्र असमंजस था और सुमति के कोई संतान न थी। सुमति ने भगवन शिव का तप किया और उनसे पुत्रो का वरदान प्राप्त किया। कुछ समय पश्चात् रानी के एक मांस पिंड पैदा हुआ। मांस पिंड देख रानी बहुत दुखी हुई और वह शिव का ध्यान करने लगी। भगवन शिव ब्राह्मण का रूप बनाकर रानी के पास आये और उस मांस पिंड के साठ हजार टुकड़े कर दिए। उन टुकड़ो में शिवजी ने प्राण संचार कर साठ हजार जीवित पुत्र बना दिए। एक बार रजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ कर यज्ञ का घोड़ा छोड़ दिया। घोड़े को पकड़ इंद्र ने कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। कपिल मुनि तप में लगे थे उन्हें इस विषय में कुछ भी मालूम न था।
बहुत समय तक घोड़ा वापस नही आया तो रजा सागर ने साठ हजार पुत्रो को घोड़ा ढूँढने भेजा। घोड़े को खोजते-खोजते वे लोग कपिल मुनि के आश्रम पर आये और वहा घोड़े को बंधा पाया। घोड़े को वहा देख उन्हें क्रोध आया और उन्होंने मुनि को अपशब्द बोल दिए। मुनि ने अपना अपमान देख सगर के साठ हजार पुत्रो के श्राप देकर भष्म कर दिया। जब यह समाचार रजा सगर को प्रप्त हुआ तो वे बड़े दुखी हुए। वे राज दूसरी रानी के पुत्र असमंजस को देकर वन में तप करने चले गए। राजा असमंजस भाइयो की मुक्ति के लिए संघर्ष करते रहे परन्तु सफलता प्राप्त नहीं हुई। इसके बाद उनका पुत्र अंशुमान मुनि कपिल के आश्रम में जाकर उनकी सेवा करने लगा। उसकी सेवा से मुनि प्रसन्न हो गए और बोले की पुत्र स्वर्ग से गंगा को धरा पर लाना होगा। गंगाजल जब उनके भष्म जब उनके शरीरो पर पड़ेगा तो तुम्हारे चाचाओ की मुक्ति हो जाएगी। राजा अंशुमन ने गंगा को धरती प् लेन का बहुत प्रयास किया, परन्तु गंगा को नहीं ला सके। उनके पुत्र राजा दिलीप भी सफल न हो सके।
राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ हुए। राजा भागीरथ ने गंगा को धरती पर लेन का प्रयास प्रारम्भ किया और वे हिमालय पर जाकर उग्र तप करने लगे। उनके तप के कारण गंगा धरती पर आने के लिए सहमत हो गयी। गंगा बोली मेरा वेग कौन रोकेगा। मै स्वर्ग से गिरकर सीधे पाताललोक चली जाउंगी। अब भागीरथ भगवन शिव का तप करने लगे उनकी तपश्या से प्रसन्न होकर शंकर जी ने गंगा जी को अपनी जटाओ में धारण कर लिया। गंगा जी शिवजी की जटाओ में चक्कर लगाती रही। भागीरथ के कहने पर शिवजी ने गंगा जी को अपनी जटाओ से मुक्त कर दिया। इसीलिए शिव को गगाधर भी कहा जाता है। राजा भागीरथ के पीछे-पीछे गंगा उस स्थान पर पहुची जहां सगर के साठ हजार पुत्र भष्म हुए थे गंगाजल का स्पर्श पाते ही उन्हें मुक्ति प्राप्त हो गयी।
अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
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