पत्थरों से भी निकलते गीत हौसला गाने का होता है तभी , पत्थरों से भी निकलते गीत हैं | जो समझलैं ये भी दिए भगवान ने शूल से भी तो निकलती प्रीत है || नित चलाये जिसने तीखे वाण ही , उर समझता ही रहे वो म…
चलो गाँव होके आते हैं बुजुर्गों की खाली खोली में कुछ रात सोके आते हैं , चलो रे चलो बच्चो अपने गाँव होके आते हैं || बंजर पड़े सारे खेतों को अपने पसीने से सींचकर, मडुवा,झिंगोरा,गहत,भट्ट मिलकर बोके आत…
गीत हे वीणापति हे वीणापति,क्या करूँ अर्पन तुम्हें माँ | उर के गीतों का ही नित वंदन तुम्हें माँ || हे वीणापति,क्या करूँ अर्पन तुम्हें माँ || माँ तुम बसी हो लेखनी में जानता हूँ | सिर पर तेरा नित हाथ…
मधुशाला अरि के उर हो प्रतिशोध की, धधक रही बड़ी ज्वाला | उसको नीर बना सकती है, वाणी की ही मधुशाला || यदि कोई रखता हो उर में, गरल मिली थोड़ी हाला | मैं उसके हित…
पथ के पाथर पथ का पाथर कहाँ किसे कब , कहो तनिक छल पाता है | ठोकर देता तभी पराया, मीत पता चल पाता है || यदि राह पर सुमन केवल हों , सुख का भी आभास न हो | यदि बाधा ना बाँह प…
मधुशाला दीप जलाकर नव मयूख से, खोल दिया उर का ताला | नवल दिवस में भेज रहा हूँ , शुभ स्मृति की मधुशाला || हृदय में नव आनन्दों का, छलके परिमल का प्याला | और बुलाये …
मेरे दोहे 1-कौन देखता घन यहाँ ,कौन झूलता डाल | धन की गठरी बाँधते ,बुनते सब जंजाल || 2-घन ही तो करते यहाँ ,धरणी का श्रिंगार | मुस्काते हैं खेत सब ,हँसती वट की डार || 3-घन की चादर ओढ़कर…
इस कदर डूबे उन के प्यार में जैसा पानी में पानी। दिल के जज्बात घल गए लब्जों में जैसे कवि में कहानी। अब खुद को तलासते है उन की आँखों में। जैसे मरुस्थल की रेत में मिलता हो पानी। आदमी
हरेला आ रहा है फिर हरेला,रोप लेना पेड़ को | रुके न साँसों का मेला, रोप लेना पेड़ को || हरित वन ही दे सकेंगे,इस धरा को वात जल, काट कर तुम वन विटप को,कर गए निज से ही छल | आ न जाए मृत्यु बेला,रोप लेना …
गीत प्रेम के गाते हैं तम को हरने आओ मिलकर, छोटा दीप जलाते हैं | उर की कटुता का भंजन कर, गीत प्रेम के गाते हैं || हम गीत प्रेम के गाते हैं || यह तन तो माटी का पगले , …
मेरे दोहे 1-बनी रहे नित आपके ,अधरों पर मुस्कान | नित रसना करती रहे,केशव का गुणगान || 2-ऐक दिया भी तम गहन ,देता है नित चीर | ऐक मनुज यदि ठान ले ,खींचे नई लकीर || 3-खाली धरती ना रहे ,लगे…
तुझे खुसबू की सौगात दूँ या भवरों की बारात...? तुझे दे दूँ फूलों की सौगात मै तो सबनम हो तेरी मौहताज.. दिन महकें गुलों से तेरा और खिले चाँदनी तेरी चौखट पर हर रात आदमी
मुझे शून्य बना दे खुदा मेरी कीमत बनी रहे सदा आगे लगूँ न कीमत घटाने के लिए पीछे खडा रहूँ कीमत बढाने के लिए मुझे शून्य सा मिला दे खुदा मेरा मैं शून्य सा रहे सदा देवेश आदमी
लिख रही हुँ एक सपना एक हकीकत ऐ जिन्द्गी तेरे लिए कलम की वसीयत रामेश्वरी नादान
गीत था हृदय में दम्भ मेरे भर गया, और मैं विजय की कामना करता रहा | परिमल से भरे सुमनों की चाह में, शूलों से ही मैं सामना करता रहा || दुत्कार कर द्वार आये भिक्षु को, देवों की ही मैं अर्चना करता र…
पहाडों की याद हमने पहाडों की याद में यूँ ज़िन्दगी पार की, करवटैं बदल-बदल कर रातैं गुजार दी || ये पहाड़ चीख-चीख कर पुकारे यारो, अब इन बीरान पहाडों को कौन सँवारे यारो || तेरे जाने से यहाँ की बयार छली …
तेरा होना भी वैसे ही है जैसे धूप में बारिश का आना सर्दी में ठण्डे पानी से नहाना हर गलती पर करना बहाना पापा का बच्चों को लौरी सुनना माँ का अचानक बच्चों से दूर होना सर्दी के दिनों में सुबह जल्दी जगाना …
मैं कवी हूँ कि कवि हूँ मैं कवी हूँ कि कवि हूँ कभी हूँ कि नहीं हूँ घस्यारा है या कलमकार किसको चाहिए जय -जयकार ! बदलोगे समाज को? या पहनोगे हार ! ढोल -नगाड़े बजा रहे हो लिखना कब सीखोगे यार ? सर्वाधिकार…
वो चल रहे थे इस कदर गजब नज़ारे ढा गये। दुनिया ने चलना छोड़ दिया,मुर्दो पे प्राण आ गये।। तेरे इन शब्द भेदी बाणों से। दिल घायल हो गया मेरा। तरकस में मेरे तीर नहीं । मैं कायल हो गया तेरा । इश्क़ के अदीब…
।।मेरु कु सुपन्यों उत्तराखण्ड।। हिमामै की कोळी म पसिरियों मेरु सुपिन्यों कु उत्तराखण्ड हिमालै की लोळी म चमकुणु मेरु सुपिन्यों कु उत्तराखण्ड। बुग्याळों म गिरमुण्डी खेळूणु मेरु …
हुदू ने मुफ़्लिसी में दबिश दी मेरे बज़्म में गुलिशतां था जो दरख्तों की तरह दिखने लगा आज भी मेरा चमन हया में है मगर मदफूंन हूँ महजूज हूँ सुकून है जन्नत नही नसीब में पर मसरूर हूँ मसगूल हूँ आदमी
गा ले मन गा ले मन कंटक पथ में भी | मिले सुख या व्यथा घनेरी , मिले निशा या भोर सुनहरी | कभी शूल या कभी सुमन हों , मुक्त रहो तुम या बन्धन हो || मुदित रहो नित कर्मपथों पर , चढ़…
कैसी यह भारतीयता कैसी यह भारतीयता कैसा लोकतंत्र शोषित है लाचार यहां शोषक विचरता स्वतंत्र पंख लगा उड़ गए मंथन और विचार चारों और फैला ,आडम्बर और व्याभिचार धूमिल होती छवि देश की धुमिल गरिमा-गान राष्ट्रच…
होटले नौकरी भांडों का ढाँगो मा ढक्याँ छां माँ जी तन्दूरै की हाळी मा पक्यां छां माँ जी छ्न्दा रौंत्याळा मुल्क छोड़ी रात-दिन हम होटलों की खस्यों मा लुक्यां छा…
ए मेरे घनश्याम 1-ठोकर देता जब कभी ,तुरत पकड़ता हाथ | तव लीला किसको पता ,हे जग दीनानाथ || 2-उषा तुझसे ही बने ,और सुहानी शाम | तुझसे ही ऋतुयें बनें ,ए मेरे घनश्याम || 3-हृदय से है बन्दगी ,हृदय…
हरेला लोक पर्व की बधाई बिन पौधों से बरसता नही ये मौसम न सावन में न भादो में,, आवो श्रृंगार करें हम धर्ती माँ का कहीं पेड़ न रह जाये सिर्फ हमारी यादों में,, चलों खुद की आँसुओं से ही सींचे प्राणदायनी पौ…
खुदेड़ डाँडी काँठी की ओर से आप सभी को हरेला की शुभकामनायें 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 हरेला आपको.......... 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 सुखों की हरियाली ,दे हरेला आपको | घरों में खुशहाली ,दे हरेला आपको || होली दे…
छवीं दारोल्या की :- कैमा बिंगाऊँ कैमा लगाऊँ आज दर्द उत्तराखण्ड कु , नाशा चपेट मा बर्बाद हुणुच आज प्रत्येक मर्द उत्तराखण्ड कु , आँखां बण्या छी लाल धतूर , छवीं लगाणुच हव्वा मा , दिन्न भर म्वारी ,म्वारी…
दर्द --------------------------------------- हर वक्त मुझे मरने का गम क्यों सताता है,, ये मेरे घर का आइना मुझे बहुत रुलाता है,, नींद में भी मुझे चलने की आदत सी है,, ए कौन सा दुश्मन है मेरा जो मुझे नीं…
तू जमाने भर का दुलारा बन के देख, तू किसी की आँख का तारा बनके देख| अपने लिए तो सभी जीते हैं सागर, तू किसी बेसहारे का सहारा बनके देख | विद्यासागर कापड़ी
प्रजातंत्र रखवाले बदल रही है सभ्यता बदल रहा परिवेश लुटेरे घूम रहे हैं बना के साधु , "वेश" शत-शत नमन करो इनको ये प्रजातंत्र रखवाले हैं मदिरा के प्यालों से पानी की प्यास बुझाते हैं बचना इन …
आँखियूं आँखियूं मा सनकै ग्ये वा, प्रेम का बाटु बिरड़ै ग्ये वा | वीं क माया मा मि चकोर सि रो फफड़ाट कनु , टम,सिकर्या बणि क टमकै ग्ये वा || सर्वाधिकार सुरक्षित दिवाकर बुड़ाकोटि
पितृ दिवस की शुभ कामनायें बच्चों के ही सपनों के हित, बनता खाद व पानी है | अपने को बूढ़ा है करता , देता भरी जवानी है || बन जाता गदहा या घोड़ा, अपने सपने मारे वो | एेक माँग प…
मै फूलों पर था तो लोग आहें भर रहे थे,, आज.......................फूल मुझ पर क्या गिरें अपनो ने मुहँ मोड़ा, और.......….................. आसमान रोने लगा, देवेश आदमी
जोन की आस (एक गढ़वाली गजल) हे हमुन भी देखी जोन केकी मुखड़ी म हे हमुन भी पालि आस केकी जुकड़ी म पर य बात औरे छै कि सी हमरा नी हवे सकिन। हे हमुन भी पीनि द्वी …
कुछ दोहे 1-बहुतेरे पग खींचते, दूजा बढ़ता देख | सागर कहिए क्या भला, एेसी जड़ता देख || 2-मोदी के कायल हुये,सकल जगत के देश | भारत का भाने लगा, सबको ही परिवेश || 3-सकल जगत में हो रहा, भा…
कास मै सब का प्यारा बन जाऊं, खुदा करे एक दिन तारा बन जाऊं, जिन्दगी में मुझे पाने की सब की चाह हो, बस इतना दूर जाऊँ की दुलारा बन जाऊं, आदमी
धुवण्य ह्वै गे अब य जून!! छलौरी चल यु काया बदलो!! फुंगड़ी कु माटु म रबदले जुंला!! अगास कु गैणा बण जुंला!! ज्वानी कु चबोड छोड़ लाटा!! जवठ म घनुड़ी सि घोल बणोंला!! !!आदमी!!
हाजिर होऊंगा हाजिर होऊंगा,समय समय पर अपनी उपस्थिति,दर्ज कराऊंगा तुम हर बार मुझे,इग्नोर करना मै हर बार,बेहतर करके आऊंगा ¶ अपनाना पड़ेगा तुम्हे,मुझे एक दिन मै बस,कर्म करता जाऊंगा दिखाऊंगा मै भी हूँ,एक अ…
सभी मायादारों थै समर्पित ~~~~~~ तु सदनी ही सयाणी रै !! मै तब भी माया लांणू रै !! तु औरों की बात करणी रै !! अर मै तेरा गीत गाणु रै !! तिन समझी घोर लाटू मै !! समणी ही घात करणी रै!! त्वे कभी भी ख्वे नि …
बहारें ढुंड़ेंगी हमें हम नजाने फिर कहाँ होंगे..? मत्ला तो ये है वो दिन न फिर अल्फांजों में बंयां होंगे,, तकदीर से मिले हो तो कुछ गुफ़्तगू ही कर लो,, जहाँ सब चले गए क्या पता हम भी वहाँ होंगे,, आदमी
हर कर्म की सजा यहां पहले से मुकर्रर है किसी की दुवा तो किसी की बद्द दुवा देवेश आदमी
मैं मैं अपने "मैं" को तराशता हूँ मैं खुद अपनी मंजिल और रास्ता हूँ मैं भरा हूँ स्वाभिमान से एक क्षण को भी फिरा नहीं ईमान से मैं लिखता हूँ कविता गाता हूँ गीत नहीं किसी से वैर भाव सब मेरे मन क…
लो आ गयी बारिश लो आ गयी बारिश लेकर तेरा पैगाम भीगती आंखो ने लिख दिया तेरा नाम तू भी आ जा बारिश करती बेचैन बादलो के संग बरस रहे नैन देख लूँ तुझे नैनो की बुझे प्यास बरसती बुन्दों संग तू आ जाये काश…
श्रावण मनहर कुवलयों की मालैं हैं कासारों में, निकले दादुर जलधर का पाकर आमंत्रण।| झलक रही मुस्कानैं अटवी के अधरों में, तट का नद पर कहाँ रहा है आज नियंत्रण।। कुम्भी भरे हुँकार मस्त होकर कानन में, छटा…
"खत्यूँ" खैंचदी खैंचदी, ऊबैं ऊबैं, ऊ हौरी जी कड़ुकुड़ु ऊंदैं ऊंदैं। हथ्यौं हथ्यौं मा ऊ, खूब ख्यलै पण जरा जरा कै ऊ रड़कदू गै। ऊदैै ऊबैं,.ऊबैं ऊदैं खत्तैंई खतैई, खड्याण जुगा ह्वैई दा रै....खत्य…
गैल्या घुघती हे गैल्या घुघती दिदै पैंछा लो पँखुर भिटें औन्दु लो मैं मैतियों सणी मिटै औन्दु रे गैल्या जुकड़ी रणमणि। दी दै पैंछी अपड़ी मीठी मयाळी गळि खुद मिटै औन्दु गैल्या भेजी-भूलों की बुरा…
अबारि दौं तु बेटा घौर जरूर ऐ तेरी ब्वे सगत बीमार च लगदा मंगसीर तेरी छोटी भूलि सरू कु ब्यो चा दहेज मा ऊंकि मांग मोटरसाइकिल अर कार च!!! पिछला के सालो बटि लून भी पास नि हुणू कनि या हमारी निरदयी सरकार च …
कड़ी दवे का। बाद ही रन्दू जर मुंडारू सिर गाता कु दुख का बाद ही ओन्दु सुख नियम च बिधाता कु शांत राख शीतल, चित्त चिन्ता मा दुःख ओन्दु जीवन मा सुख…
विश्वा उत त्वया वयं उदन्या इव! अति गाहेमहि द्विष:!! ऋग्वेद 2-7-3 हे मनुष्यों ! (मनुष्य) जैसे जल की धारा प्राप्त स्थान को छोड़ कर आगे बढ़ जाती है ऐसे ही शत्रुता व द्वेष का भाव छोड़ कर तू मित…
मेरे दोहे 1-पथ में मित्र अमित्र का, कब रहता है भान | जब पग में काँटा चुभे ,तब होती पहचान || 2-जो माँ देती अन्न को, जो देती है नीर | जो उसको गाली करे, तन को डालो चीर || 3-कब तक सैनिक…
मै हर साम यही सोच के पी लेता हूँ किस का क्या बिगाड़ा मैने, चलौ एक दिन और जी लेता हूँ आदमी
मुसाफिर हूँ मुसाफिर हूँ, वर्षों से निरन्तर प्रयास में हूँ इंसानों की भीड़ मे मै इंसानियत की,तलाश मे हूँ ¶ यूँ तो भीड़ बहुत है,इंसानों की पर ऐसे इंसान की,फ़िराक में हूँ करे प्यार जो,बिना स्वार्थ वश उस मह…
बरसती बुंदे सुहानी लगी टपकती छत बेगानी लगी दर्द हमारा बाँटे क्युं कोई दर्द ऐ दस्ता सबको एक कहानी लगी नादान
है ब्वै कन चौमास च लगीं मिथे मेरि सुवा की च याद आणि फ़ोन पैसा हुंदा त मि चम फोन करदु वीं कु मुखड़ी नेट म देखदु आदमी
आवागमन ना जाने कितने जन्मो से संयोग बना है आपसे स्नेह ,प्रेम अपनत्व के रिश्ते जीवन भर साथ थे भूला नहीं बचपन अपना स्नेह,नेह का कलकल बहता था झरना जा रहे हो छोड़कर ! दुख होता है ,मन रोता है जानता हूँ मर…
स्त्री जब मुलायम रोटी बन जाती है --------------------------------------- आज रोटी बनाते हुए ये खयाल आया स्त्री रोटी सी है जिसे बेला जाता है समाज रूपी बेलन से बेलन देता है आकार और वो बेलन के मन मुताबिक…
गीत आई जाये गौं देखण ,गाड़ा पूँगा तीर | पात में खाइ जालै भुला झिंगोरा की खीर || हिक-हिक लागली बाटुली,आली त्वैकै याद, आलो तेरी जिबोड़ी में ,चुड़कानि को स्वाद | भेटि जालै आमा-बुबु कै,ल्हि जालै …
"ये डाला का छैलु" ये डाला मा अब क्वी, फल नी लगदु बल यु डालु अब क्वी बी, कामौ नी च। ये डाला मा अब क्वी, फूल नी सजदु बल यु डालु अब कैकु बी, नामौ नी च। ये डाला मा चखुली बी, अब घ्वोल नी बणौदी य…
साक्षर भारत सीखी आखर-आखर बणोण भारत साक्षर अंगूठू लाण छुटलु केला सब हस्ताक्षर अनपढ़ तें पढ़ोला अर साक्षर भारत बणोला। अब नी रेलू क्वी भारत मा निरक्षर संकल्प ल…
ह्यूंद का बाद ही ओन्दु बसन्त फूल पातियों बर्खा बर्खि ही। ओन्दु मोळियार डाळि बुर्दियों धाक राख धाफना यखुली अंध्यारा मा जोन लुकदी सारा दिन र…
उवसमेण हणेकोहं,माणं मद्यवंया जिणे! आयं चडज्जव भावेण,लोभ संतोषओ जिणे!! :--समणसुत्तं.736 क्षमा से क्रोध का हनन करें,मादर्व से मान का को जीतें ,आजर्व से माया को और संतोष से लोभ को जीतें. शुभ प्रभात…
चौमासी दोहे 1-वृक्ष धरा की साँस हैं,जीवन के हैं मूल | इनको जो है काटता , करता भारी भूल || 2-यदि तुम काटो एक वृक्ष ,दस को देना रोप | होगा प्रलय अन्यथा , होगा भू पर कोप || 3-खूब लगान…
तरूण परिवर्तन का वह वाहक है बदलेगा कल को , बोध पाता भाव तरूण. राजेन्द्र सिंह रावत दि०23/6/2017
दादु मि पर्वतौ कु वासी , खाणुं नि खान्दू मि बासी तीबासी.. हर कैसे बच्यांदु मि हिसाब से , ज्यादा नि करदु मि चापलासी .. मिठ्ठी मेरी बोली भाषा , , उत्तराखंड कु छू मि निवासी .. दादु मि पर्वतौ कु वासी , …
मेरे टेढ़े-मेढ़े शेर 1-उसके बगैर अधूरा सा सावन लगता है, उसके बगैर अधूरा सा दर्पन लगता है| चले तो जाता हूँ मैं बागवाँ गुलाब में, पर उसके बगैर कहाँ मेरा ये मन लगता है || 2-ऐ ईश, यौवन की वो सारी बातें…
आजम केवल शीशी में ही गरल नहीं होता है, होता ये रसना से निकले शब्दों में भी | देशद्रोह केवल गोली से कब होता है, छुपकर दौड़ रहा होता है नब्जों में भी || करते सैनिक माँ की रक्षा खेल मौत से, उनको तेरा ग…
किसी को सावन की पहली बारिश प्यारी लगी किसी को टपकते छत छुरी कटारी लगी अज मेरा दिल भी जार-जार रोया लोगों को मेरे आंसुओं की बारिष अधूरी लगी आदमी
कविता कविता मन के उदगारों का गीत हुआ करती है पीडित -व्यथित जन के मन का मीत हुआ करती है कविता वह मंत्र है जो देती मन को शान्ति मिटा देती है जो तिमिर आव्रत लोक की भ्रान्ति मन में ,प्राणों में श्वासों-स…
पुरुष पत्थर है ---------------------- पुरुष पत्थर है सच ही तो है ऐसा पत्थर जो ढाल बनकर खडा है अपनो के बीच चट्टान सी हिम्मत लिये परिवार की नीव को मजबूत आधार देता हुआ पिता ,भाई, पति रुप में खडा है रक्ष…
लोग जब जिन्दगी में कभी मसहूर हो जाते हैं लोग , अपनों से और अपने से दूर हो जाते हैं लोग | भूल जाते हैं मुसीबत में किसने साथ निभाया , इस कदर कैसे नशे में चूर हो जाते हैं लोग | जमीन को भूल जात…
'म्यार देशा क सिपाइ' (कुमाउनी कविता): पूरन चन्द्र काण्डपाल (Pooran chandra kandpal) म्यार देशा का सिपाइयो तुमुकैं म्यर प्रणाम, धन तुमरी बहादुरी धन तुमौरौ काम । म्यार... क्वे गुरखा सिक्ख बिहार…
नमस्कार मित्रों.... 07/07/17 सबका भला करे भगवान, सबका सबविधी हो कल्याण.. "अजुकी माया" कबर्यों ना ज्यू बी मरण प्वड़दू दिदौं सची ना बच्चों बान्यौं, क्य क्या नी कन प्वड़दू भयौं। मेरी ब…
फिर से एक बार अपणा उत्तराखंड का बाजौं तैं समर्पित एक रचना "ढ्वलकी बिचरी" ढ्वलकी बिचरी कीर्तनौं मा, भजन गांदी, खैरी विपदा सुणादी। पढै लिखैई बल अब छूटीगे, एक सुपन्यु छौ मेरू, ऊ बी टूटी…
जौं आंखियों मा आज, अंगरों की आस अंगरली, स्वाणा-सुखिला-सुपिन्या बणी तों भविष्या मा भोळ, विधाता भलु भाग बाँटली, आँखा बुझी अंजूळी भरी। …
अपाणिपादो जवनो ग्रहीता पश्यत्यचक्षु :सश्र्रणोत्यकर्ण: स वेत्ति वेद्यं न च तस्यामि वेत्ता तमाहुरग्रयं पुरूषंमहान्तम्! श्वेता०3/19 परमेक्ष्वर बिना हाथों के पकड़ लेता है ,बिना पावों के गति करता है …
याद ओन्दु नैतें आज अपुणु गौं वू कच्चु बाटू वू बांजे डाल्यो कु छेल सब कुछ ख्वेग्यों आज ये शहर की भीड मा हरचेलि हमुन वू बचपन मा गुल्ली डण्डा कु खेलण वा बसग्यालि रात,वुं चुलों की गर्म आग वु क्वेला मा से…
धर्य-धीरजन धैर्य राख धिर्जन, खेरी बिपदा मा घाम अछलेन्दु ब्याखुन्यों भोल सुबेर चमकणा, आस राख बिश्वास, ओखी आफद मा खंगरी होंदी ह्यूंद डाली नई क्वँपळी …
ये रात गहरी है चाँद बना प्रहरी है सो गया गाँव मेरा जो जाग रहा वो शहरी है सर्वाधिकार सुरक्षित सुनीता रामेश्वरी नादान
ये जिंदगी का सफर मुस्किल बड़ा था मगर .. डाल लागली झगुली तुम्हारी .... तुम कने चल गये हमें यखुली छोड़ कर .. ये जिंदगी का सफर मुस्किल बड़ा था मगर . . बरसों बटिकी त्यारू ,नाम दिल्ल माँ छप्युं छायी .. यु त्…
प्रस्तुत छः एक कविता ~~~~ खेतु माँ हर्याली हो ।। बणु मा घस्यारी हो ।। बणु् माँ फुलारी हो ।। पन्देरो मा पन्यारी हो ।। मनखी देवतों का भेष हो ।। यनू अप्डू गढ़देश हो ।। रीति हो रिवाज हो ।। घरु घरु मा प्या…
सबसे ज्यादा पलायन पर रोता पहाड़ी है सबसे पहले पहाड़ को छोड़ता पहाड़ी है बैठा है शहर में ,बात करता घर गांव के समाज की देखो!कितना विचित्र प्राणी पहाड़ी है छोड़ आया व्यर्थ कारण पहाड़ को पलायन पर अब पहाड…
तल्खियां देते है लीग अब मेरे जख्मों पर।। कोई मरह्म तो दें जो जख्मों को भरें आदमी
बिरखांत -164 : केदारनाथ और उपहार काण्ड नहीं भूलेंगे लोग हर साल जून का महीना आते ही 16 तारीख को केदारनाथ की वह त्रासदी याद आ जाती है जिसमें सरकारी आकंड़ों के मुताबिक ५८०० लोग मारे गए या लापता हु…
मेरी आस छे तु मेरी सांस छे तु मेरी प्राणो से प्यारी मेरी जान छे तु! मेरा दिन छे तु मेरी रात छे तु क्वि त्वे तक पहुंच न सकु यनि मेरी आसमान छे तु!! बसन्त का मैनो की शरद रि्तु छे तु जेठा का मेना कु तडतड…
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